'जलवायु परिवर्तन का समाधान भारत के बिना संभव नहीं..', जर्मनी ने की तारीफ

नई दिल्ली: जर्मनी की आर्थिक सहयोग और विकास मंत्री स्वेन्या शुल्त्से भारत दौरे पर हैं और गुजरात के गांधीनगर में चौथे रि-इनवेस्ट सम्मेलन में हिस्सा ले रही हैं। यह सम्मेलन अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है, जिसमें जर्मनी को अहम साझेदार देश के रूप में शामिल किया गया है। मंत्री शुल्त्से ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान भारत के बिना संभव नहीं है, क्योंकि भारत सबसे बड़ी आबादी वाला देश और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी को मजबूत करके जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा निवेश की अपील की। उन्होंने हंसी-मजाक में कहा कि उनके कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी अब अक्षय ऊर्जा मंत्री बन गए हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि देश भी कोयले से अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है। भारत में अभी भी कुल ऊर्जा का 80% हिस्सा जीवाश्म ईंधनों से आता है, और इसका एक बड़ा कारण कोयले का उपयोग है। शुल्त्से ने उम्मीद जताई कि अक्षय ऊर्जा में भारत और जर्मनी की साझेदारी बढ़ेगी, जिससे कोयले का इस्तेमाल धीरे-धीरे खत्म होगा। उन्होंने कहा कि जर्मनी की कई कंपनियां भारत में अक्षय ऊर्जा में निवेश करने को तैयार हैं।

शुल्त्से ने कहा कि भारत और जर्मनी के बीच अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्लेटफॉर्म शुरू किया जा रहा है। जर्मनी के पास इस क्षेत्र में तकनीकी ज्ञान और अनुभव है, और भारत एक तेजी से बढ़ता बाजार है, जिससे निवेश के अच्छे अवसर बन रहे हैं। मंत्री शुल्त्से ने पर्यावरण संरक्षण और दीर्घकालीन साझेदारी की आवश्यकता पर जोर दिया, और कहा कि यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसे सफल बनाने के लिए समय और प्रयास की जरूरत है। उनका मानना है कि भारत-जर्मनी साझेदारी से अन्य देशों को भी सीखने का मौका मिलेगा और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या का समाधान संभव होगा।

भारत दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में यह अन्य देशों से काफी कम है। 2022 में भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2 टन था, जबकि जर्मनी में यह 8.9 टन था। वैश्विक औसत 4.7 टन है। भारत अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। वर्तमान में भारत में 200 मेगावॉट बिजली अक्षय स्रोतों से उत्पन्न हो रही है, जिसे 2030 तक 500 मेगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मोदी ने 'पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना' का जिक्र करते हुए बताया कि इस योजना के तहत 1.3 करोड़ लोग सोलर सिस्टम लगाने के लिए रजिस्टर कर चुके हैं, और 3.25 लाख घरों में सोलर सिस्टम लगाया जा चुका है। इस योजना से घरों में न केवल ऊर्जा की जरूरतें पूरी हो रही हैं, बल्कि लोग अतिरिक्त बिजली बेचकर पैसे भी कमा रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने बताया कि भारत के 17 शहरों को सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की योजना है, जिनमें अयोध्या भी शामिल है। इसके अलावा उन्होंने परमाणु ऊर्जा और 'ग्रीन हाइड्रोजन मिशन' की भी चर्चा की। 16 सितंबर को प्रधानमंत्री ने गांधीनगर और अहमदाबाद को जोड़ने वाली मेट्रो लाइन का उद्घाटन किया, जिसमें जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस परियोजना के लिए जर्मन विकास बैंक ने 60 करोड़ यूरो का कर्ज दिया है और जर्मन कंपनी सीमेंस ने तकनीकी मदद दी है।

स्वेन्या शुल्त्से ने भी इस मेट्रो लाइन पर सफर किया और इसे बर्लिन मेट्रो जैसा अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि मेट्रो ना केवल एक बेहतर यात्रा का साधन है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। शुल्त्से ने भारत की इस दिशा में प्रगति को एक महत्वपूर्ण साझेदारी का परिणाम बताया।

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