आखिर क्यों चंद्रदेव ने की थी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना?

भारत एक ऐसा देश है जहाँ धार्मिक विविधता एवं धार्मिक सहिष्णुता को कानून और समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहाँ की संस्कृति में एक अहम स्थान रहा है। वही भारत में यदि हम मंदिरों की बात करें तो देश में ऐसे कई मंदिर है जहां की अपनी अलग-अलग महत्वत्ता है। वही यदि हम बात करें 12 ज्योतिर्लिंगों की, तो शिव जी के देश में भले ही कितने मंदिर हो किन्तु इन 12 ज्योतिर्लिंगों की अपनी एक अलग अहमियत है। कहा जाता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों में ज्योति रूप में महादेव स्वयं विराजमान हैं। और इन 12 ज्योतिर्लिंगों की इतनी मान्यता है कि कहते है इनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे पापों का ख़ात्मा हो जाता है तो आइये आज हम आपको इन 12 ज्योतिर्लिंगों के सबसे सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग की महिमा के बारे में बताएंगे जिसकी सबसे पहले स्थापना हुई थी...

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात):- गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को भारतीय इतिहास और हिन्दुओं के चुनिन्दा एवं महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक माना जाता है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के तौर पर जाना जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक अनोखी कथा है, प्राचीन ग्रथों के अनुसार, राजा दक्षप्रजापति की 27 कन्याएं थी, जिनकी शादी उन्होंने चंद्रदेव (चन्द्रमा) से की थी, लेकिन इस विवाह के बाद चंद्रदेव का अपनी 27 पत्नियों में से 1 रोहिणी के प्रति ही अधिक प्रेम था, वही इस बात से राजा दक्षप्रजापति की 26 पुत्रियां नाराज रहती थी। एक बार 26 पुत्रियों ने पिता दक्षप्रजापति के समक्ष अपनी पीड़ा जाहिर की, तब वे चंद्र से मिले और उन्हें समझाया कि सभी पत्नियां एक समान होती है सभी के लिए हृदय में एक समान प्रेम होना चाहिए। 

किन्तु उनकी ये बात चंद्रदेव को समझ नहीं आई तथा वे रोहिणी के ही प्यार में ही खोए रहे। और राजा दक्षप्रजापति के कहने पर भी चंद्रदेव ने रोहिणी की बात नहीं मानी और रोहिणी के प्रेम में ही खोए रहे, यह देखकर राजा दक्षप्रजापति क्रोधित हो उठे तथा चंद्रदेव को क्षय रोग होने का श्राप दे डाला कि जाओ आज से तुम्हारें चेहरे का तेज कम हो जाएगा। श्राप के कारण चंद्रदेव क्षय रोग से ग्रसित हो गए, तथा पृथ्वी पर रात्रि के समय अपनी शीतलता की वर्षा ना कर पाने से पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच गई, क्षय रोग से ग्रस्त चंद्रदेव बहुत दुखी और चिंतित थे और सोचने लगे कि कैसे इस श्राप से मुक्ति पाऊं। तब ब्रम्हाजी को इस बात का पता चला तथा उन्होंने इसका उपाय बताते हुए कहा कि इस श्राप से मुक्ति का केवल एक ही मार्ग है किसी पवित्र स्थान पर जाकर देवो के देव महामृत्युंजय भगवान शिव की आरधना करो और वही इसका निवारण कर सकते है और इस श्राप से मुक्ति दिला सकते है। 

वही इस बात को सुनकर चंद्रदेव पवित्र स्थान पर गए और वहां जाकर 10 करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया, वही इस तपस्या को देखकर महादेव ने चंद्रदेव को अमरता का वरदान दिया, साथ ही कहा, चंद्रदेव तुम चिंतित ना हो तुम्हे इस श्राप से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही प्रजापति के वचनों की भी रक्षा होगी, तब वहां उपस्थित सभी भक्तों ने एक साथ महादेव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया और प्रभु से विनती की कि आप लोगों की रक्षा के लिए यहां निवास करें तब महादेव ने इस प्रार्थना को स्वीकार किया तथा इस तरह देश के पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।  

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