लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मेरठ से समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट के बाद सोमवार को बाराबंकी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बार-बार नोटिस के बावजूद अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए, जिसके बाद अधिकारियों ने कार्रवाई की। गिरफ्तारी तब हुई जब उच्च न्यायालय ने 1995 के एक मामले में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की अंसारी की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत के समन और वारंट का लगातार गैर-अनुपालन करने का हवाला दिया गया था। सपा के टिकट पर दूसरी बार मेरठ शहर का प्रतिनिधित्व करने वाले अंसारी को 1995 में कानूनी परेशानी का सामना करना पड़ा, जब नौचंदी पुलिस स्टेशन में दर्ज एक मामले में उनके और 21 अन्य के खिलाफ आरोप लगाए गए थे। वर्षों से जारी किए गए कई वारंटों के बावजूद, अंसारी कार्यवाही के लिए कभी अदालत में पेश नहीं हुए। उनकी कानूनी टीम ने मामले को खारिज करने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि मूल आरोपी को बरी कर दिया गया था, लेकिन अदालत ने कार्यवाही को बरकरार रखा, जिसके कारण बाराबंकी में उनकी गिरफ्तारी हुई। बता दें कि 12 दिसंबर 1997 को उनके खिलाफ पहला गैर-जमानती वारंट जारी हो गया था, लेकिन गिरफ़्तारी नहीं हुई। इसके बाद बार-बार कोर्ट ने उनके खिलाफ 101 गैर-जमानती वारंट जारी किए, मगर वो अदालत में पेश नहीं हुए। अब यूपी पुलिस ने उन्हें अरेस्ट कर लिया है। उच्च न्यायालय के निर्णय ने न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्व को रेखांकित किया, विशेष रूप से अंसारी जैसे सार्वजनिक अधिकारियों के लिए। वारंटों की अनदेखी करना और उन्हें विधायी सत्रों में भाग लेने की अनुमति देना एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है। अंसारी की गिरफ्तारी के साथ, 1995 के मामले से जुड़ी कानूनी गाथा एक महत्वपूर्ण मोड़ लेती है, जो भारत की न्यायिक प्रणाली में कानून के शासन को बनाए रखने के महत्व को उजागर करती है। राहुल गांधी को कोर्ट में पेश होने का आखिरी मौका, 7 जून को सुनवाई छत्तीसगढ़ के गांवों में नक्सलियों ने दो मोबाइल टावरों में लगाई आग 'संविधान और आरक्षण पर झूठ फैला रही कांग्रेस..', राहुल गांधी के बयानों पर कंगना का पलटवार