आप सभी को बता दें कि 28 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु और महाराष्ट्र के प्रमुख संत श्री समर्थ रामदास स्वामी दिवस है जो बहुत ही ख़ास माना जाता है. आप सभी को बता दें कि महाराष्ट्र भूमि संत-महात्माओं की खदान मानी जाती है और संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ, नामदेव, संत जनाबाई, मुक्ताबाई, सोपानदेव आदि का जन्म स्थान एवं कर्म स्थान महाराष्ट्र ही बताया जाता है. ऐसे में इन संतों ने भक्ति मार्ग द्वारा समाज में जन जागृत की थी और इस क्रम में एक संत रामदास स्वामी भी शामिल थे. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन से जुडी वह कथा जो बहुत लोकप्रिय मानी जाती है. कथा - रामदास स्वामी का जन्म औरंगाबाद जिले के जांब नामक स्थान पर हुआ. उनका मूल नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी (ठोसर) था. वे बचपन में बहुत शरारती थे. गांव के लोग रोज उनकी शिकायत उनकी माता से करते थे. एक दिन माता राणुबाई ने नारायण (यह उनके बचपन का नाम था) से कहा, 'तुम दिनभर शरारत करते हो, कुछ काम किया करो. तुम्हारे बड़े भाई गंगाधर अपने परिवार की कितनी चिंता करते हैं!' यह बात नारायण के मन में घर कर गई. दो-तीन दिन बाद यह बालक अपनी शरारत छोड़कर एक कमरे में ध्यानमग्न बैठ गया. दिनभर में नारायण नहीं दिखा तो माता ने बड़े बेटे से पूछा कि नारायण कहां है. उसने भी कहा, 'मैंने उसे नहीं देखा.' दोनों को चिंता हुई और उन्हें ढूंढने निकले पर, उनका कोई पता नहीं चला. शाम के वक्त माता ने कमरे में उन्हें ध्यानस्थ देखा तो उनसे पूछा, 'नारायण, तुम यहां क्या कर रहे हो?' तब नारायण ने जवाब दिया, 'मैं पूरे विश्व की चिंता कर रहा हूं.' इस घटना के बाद नारायण की दिनचर्या बदल गई. उन्होंने समाज के युवा वर्ग को यह समझाया कि स्वस्थ एवं सुगठित शरीर के द्वारा ही राष्ट्र की उन्नति संभव है. इसलिए उन्होंने व्यायाम एवं कसरत करने की सलाह दी एवं शक्ति के उपासक हनुमानजी की मूर्ति की स्थापना की. समस्त भारत का उन्होंने पद-भ्रमण किया. जगह-जगह पर हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की, जगह-जगह मठ एवं मठाधीश बनाए ताकि पूरे राष्ट्र में नव-चेतना का निर्माण हो. बचपन में ही उन्हें साक्षात प्रभु रामचंद्रजी के दर्शन हुए थे. इसलिए वे अपने आपको रामदास कहलाते थे. उस समय महाराष्ट्र में मराठों का शासन था. शिवाजी महाराज रामदासजी के कार्य से बहुत प्रभावित हुए तथा जब इनका मिलन हुआ तब शिवाजी महाराज ने अपना राज्य रामदासजी की झोली में डाल दिया. राष्ट्र गुरु समर्थ स्वामी रामदास छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे. उन्हीं से शिवाजी महाराज ने अध्यात्म व हिन्दू राष्ट्र की प्रेरणा प्राप्त की थी. रामदासजी ने महाराज से कहा, 'यह राज्य न तुम्हारा है न मेरा. यह राज्य भगवान का है, हम सिर्फ न्यासी हैं.' शिवाजी समय-समय पर उनसे सलाह-मशविरा किया करते थे. रामदास स्वामी ने बहुत से ग्रंथ लिखे. इसमें 'दासबोध' प्रमुख है, इस ग्रंथ में व्यवस्थापन शास्त्र यानी मैनेजमेंट ऑफ साइंस के आध्यात्मिक आधार का सटीक वर्णन किया गया है. इसी प्रकार उन्होंने हमारे मन को भी संस्कारित किया 'मनाचे श्लोक' के द्वारा. समर्थ गुरु रामदास स्वामी ने फाल्गुन कृष्ण नवमी को समाधि ली थी. इसीलिए नवमी तिथि को देश भर में उनके अनुयायी 'दास नवमी' उत्सव के रूप में मनाते है. अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने सातारा के पास परळी के किले पर व्यतीत किया. इस किले का नाम सज्जनगढ़ पड़ा. वहीं उनकी समाधि स्थित है. प्रतिवर्ष यहां दास नवमी पर लाखों भक्त उनके दर्शन के लिए आते हैं. प्रतिवर्ष समर्थ रामदास स्वामी के भक्त भारत के विभिन्न प्रांतों में 2 माह का दौरा निकालते हैं और दौरे में मिली भिक्षा से सज्जनगढ़ की व्यवस्था चलती है. ऐसे महान संत के चरणों में कोटी-कोटी नमन. सीता अष्टमी पर जरूर जानिए सीता माता के जन्म की पौराणिक कथा सीता अष्टमी: जानिए कैसे हनुमान ने की थी माता सीता की पहचान धीरे और वीरा के कारण मांग में सिंदूर भरती है सुहागन महिलाएं