सोहागपुर (सतीश चौरसिया)। भारत देश मानताओं का देश है यहां पर देवी देवताओं के स्थानों का बड़ा ही महत्व है। यहीं वजह है कि देश के कौने कौने में अलग अगल स्थानों पर अलग अगल देवी देवताओं के स्थानों पर लोग अपनी मुरादें लेकर जाते है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्री के पावन पर्व पर भगवान शंकर की प्रतिमाओं की पूजा होती है तो जगह जगह मेले लगते है। जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचते है। ऐसा ही एक मेला पचमढ़ी में लगता है जिसमें बड़ी संख्या में महाराष्ट्र से लोग आते है और चौरागढ़ जैसी ऊंची पहाड़ी पर स्थित भगवान शंकर की प्रतिमा पर त्रिशूल चढ़ाकर मन्नत मांगते है। तो दूसरा मेरा सोहागपुर के प्राचीन पाषाण शिवपार्वती मंदिर पर लगता है। शंकरगढ़ की चट्टान में उकेरी गई है भगवान शंकर की अष्टभुजा प्रतिमा सतपुड़ा की वादियों में पचमढ़ी में ही भगवान शिव के स्थान नहीं है बल्कि कामती रेंज की बीट शंकरगढ़ में भी एक ऐसी प्राचीन शिव मूर्ति है। जिसे हजारों साल पहले एक पहाड़ी में खुदाई कर बनाया गया है। यह प्रतिमा आज भी उसी स्वरूप में है जिसमें इसे तरासा गया है। शंकरगढ़ की चट्टान में मौजूद इस प्रतिमा की खासियत है कि इस तक बारिश का पानी भी नहीं पहुंचता है। शंकरगढ़ में मौजूद इस अष्ट भुजा वाली शंकर प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि पहले कभी यहां आदिवासियों द्वारा विशाल पूजा की जाती थी। जो लोग यहां मन्नत मांगते है उनकी मन्नत जरूर पूरी होती है। भगवान शंकर की इस मूर्ति के सामने कई वर्ष पुराना एक घंटा भी चट्टान में लगाया गया है। पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित है शंकरगढ़ कामती रेंज की शंकरगढ़ बीट पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित है, यहीं वजह है कि शंकरगढ़ में मौजूद भगवान शंकर की यह प्रतिमा महाशिवरात्री के दिन भी बिना पूजा के रहती है। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों ने शंकरगढ़ बीट पर्यटकों के लिए खोलने का काफी प्रयास किया है। लेकिन शंकरगढ़ तक पहुंचने वाले मार्ग की दुर्गमता को देखते हुए यहां आज भी पर्यटक नहीं पहुंच सकते। अगर शंकरगढ़ बीट पर्यटकों के लिए खोज दी जाती है तो पर्यटकों को हजारों साल पुरानी यह प्रतिमा को तो देखने का अवसर मिलेंगा ही साथ रास्ते में मौजूद चट्टान में बनी देवी प्रमिता को भी देखा जा सकता है। हालांकि देवी प्रतिमा जिस चट्टान में उकेरी गई है वहां पहुंचना भी आसान नहीं है। टूटी मूर्तियों के अवशेष भी मौजूद है शंकरगढ़ में कामती रेंज की 18 बीटों में से एक बीट शंकरगढ़ है। वनविभाग के लोग बताते है कि इस बीट को शंकरगढ़ नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यहां पर भगवान शंकर की प्रतिमा मौजूद है। पनारा से शंकरगढ़ जाने के लिए उबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए पहाड़ी चढ़ना होता है। शंकरगढ़ बीट में एक स्थान ऐसा भी जहां टूटी हुई मूर्तियों के कई अवशेष मिलते है। जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया गया है कि यहां कभी मूर्तियां बनाने का काम किया जाता रहा होगा। जिसके चलते अच्छी मूर्तियां तो यहां से ले जाई गई और टूटी हुई मूर्तियां यहां पर छोड़ दी गई। इसलिए इस क्षेत्र को टूटी मूर्ति वाला क्षेत्र कहा जाता है। महाशिवरात्रि के पूजन में यह है निषेध इस शिवरात्रि शिव नगरी में कीजिये भोलेनाथ के दर्शन शिव पुराण में छः वस्तुओं के पूजन का महत्व