'छात्राओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने का अधिकार..', SC ने हिजाब/बुर्के पर से रोक हटाई, तिलक-बिंदी पर उठाए सवाल

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज क्लास में हिजाब/बुर्का पहनने की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत की न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कॉलेज द्वारा हिजाब पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देते हुए सवाल किया कि यह प्रतिबंध तिलक और बिंदी जैसे अन्य धार्मिक चिह्नों पर क्यों नहीं लगाया गया। 

सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज प्रशासन से कहा कि, "छात्राओं को अपनी पोशाक चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और कॉलेज उन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता।" कॉलेज प्रशासन मुस्लिम छात्राओं के लिए ड्रेस कोड को लेकर नए विवाद के केंद्र में है। उन्होंने कहा कि, "दुर्भाग्य से, आपको अचानक देश में कई धर्मों की मौजूदगी का एहसास हो गया है।" मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस कुमार ने आगे सवाल किया, "क्या आप किसी को तिलक लगाने से मना कर सकते हैं? क्या यह आपके दिशा-निर्देशों में शामिल नहीं है?" सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की समीक्षा कर रहा था जिसमें जून माह के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कॉलेज के प्रतिबंध लागू करने के निर्णय को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था और स्कूल/कॉलेज में यूनिफार्म पहनने पर ही जोर दिया था। हालाँकि, कुछ दिनों पहले पहचान सामने आने से पक्षपात बढ़ेगा, कहकर दुकानदारों के नाम वाले आदेश पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने अब स्कूल-कॉलेज में पहचान दिखाने वाले हिजाब/बुर्के का समर्थन कर दिया है। 

क्या है मामला ?

यह मामला विज्ञान डिग्री प्रोग्राम के दूसरे और तीसरे वर्ष की नौ छात्राओं से शुरू हुआ था, जिन्होंने कहा था कि कॉलेज का निर्देश उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें अपने धर्म का पालन करने का अधिकार, गोपनीयता का अधिकार और व्यक्तिगत पसंद का अधिकार शामिल है। विवाद 1 मई को शुरू हुआ जब चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ने अपने आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में एक नोटिस जारी किया, जिसमें संकाय सदस्य और छात्र दोनों शामिल थे। नोटिस में एक ड्रेस कोड का विवरण दिया गया था, जिसमें परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, टोपी, बैज और स्टोल पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह निर्देश बिना किसी कानूनी अधिकार के जारी किया गया था, जिससे यह "अमान्य, शून्य और निरर्थक" हो गया।

छात्रों ने सबसे पहले कॉलेज प्रबंधन और प्रिंसिपल से संपर्क किया और अनुरोध किया कि हिजाब, नकाब और बुर्का पर प्रतिबंध हटा दिए जाएं, क्योंकि उन्हें कक्षा में अपनी पसंद, सम्मान और निजता का अधिकार है। जब उनके अनुरोधों की अनदेखी की गई, तो उन्होंने इस मुद्दे को मुंबई विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और उप-कुलपति के साथ-साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष उठाया और हस्तक्षेप की मांग की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्रदान की जाए। कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर छात्रों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील अल्ताफ खान ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि हिजाब पहनना इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है। याचिका में कॉलेज की कार्रवाई को "मनमाना, अनुचित, कानूनी रूप से दोषपूर्ण और विकृत" बताया गया। कॉलेज प्रबंधन ने प्रतिबंध का बचाव करते हुए दावा किया कि यह एक समान ड्रेस कोड लागू करने और अनुशासन बनाए रखने के लिए एक उपाय था, जिसका मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करने का कोई इरादा नहीं था। कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अनिल अंतुरकर ने जोर देकर कहा कि ड्रेस कोड सभी धर्मों और जातियों के छात्रों पर लागू होता है। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने दलीलें नहीं मानी और अब छात्राएं स्कूल-कॉलेज में हिजाब/बुर्का पहन सकती है। 

दुनियाभर में क्या नियम :- 

बता दें कि, अपनी रूढ़िवादी सोच के लिए पहचाने जाने वाले इस्लामी मुल्क सऊदी अरब ने भी परीक्षा हाल में हिजाब-बुर्के पर बैन लगा रखा है और स्कूल यूनिफार्म के सख्ती से पालन पर जोर दिया है। मुस्लिम मुल्क ट्यूनीशिया ने भी बुर्के पर बैन लगा रखा है, क्योंकि ये व्यक्ति की पहचान छुपाता है। दरअसल, ट्यूनीशिया में बुर्का पहने एक व्यक्ति ने आतंकी हमला कर दिया था, जिसके बाद देश ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का बैन ही कर दिया। इसके अलावा अजरबैजान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान भी ऐसे मुस्लिम मुल्कों में शामिल हैं, जिन्होंने स्कूलों में बुर्के को बैन किया है। कजाकिस्तान में तो ये नियम है कि, अगर कोई छात्रा हिजाब पहनकर स्कूल आती है, तो उसके माता-पिता को सजा के रूप में जुर्माना भरना पड़ता है। सजा के रूप में पहली बार 10 कजाखिस्तानी टेंगे देने पड़ते हैं। हालाँकि, धर्मनिरपेक्ष देश भारत में इसको लेकर पिछले 3 सालों से विवाद चल रहा है, बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गई है। 

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