राज्यसभा में मिला बहुमत तो पेश होगा राम मंदिर को लेकर बिल

नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश के श्री रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद के विवादित विषय पर राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि यदि सरकार अगले वर्ष तक राज्यसभा में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो फिर वह संसद में श्री राम मंदिर बनाने को लेकर बिल पेश करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर विवाद को न्यायालय के बाहर सुलझाने की बात भी कही। दरअसल सुब्रमण्यम स्वामी एक टेलिविजन चैनल के कार्यक्रम में बोल रहे थे। गौरतलब है कि हिंदूवादी संगठन और हिंदूमान्यताओं में यह दावा है कि करीब 16 वीं शताब्दी में श्री राम मंदिर का निर्माण किया गया था मगर बाद में इसे मुगल शासक बाबर के काल में तोड़ दिया गया।

यहां एक मस्जिद बनाई गई। जिसका नाम बाबरी मस्जिद हुआ लेकिन कालांतर में 1989 में श्री राम मंदिर आंदोलन उफान पर आया और फिर 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का कुछ ढांचा ढहा दिया गया। इसके बाद देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। आज भी इस मामले में विवाद है कि यहां पर मंदिर का निर्माण किया जाए या फिर मस्जिद का। अब यह मामला न्यायालय में लंबित है। सांसद स्वामी ने चैनल में की गई चर्चा के दौरान जब शाह बानो प्रकरण की बात की गई तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में पलटकर शाह बानो प्रकरण में बिल लेकर आ गई थी।

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार श्री राम मंदिर के निर्माण को लेकर बिल ला सकती है। मिली जानकारी के अनुसार उक्त चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को विभिन्न राज्यों से बहुमत हासिल हो गया था। जिसके कारण यह माना गया कि भारतीय जनता पार्टी को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त हो सकता है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने श्री राम मंदिर के मसले पर की गई सुनवाई में कहा था कि श्री राम जन्म भूमि मंदिर को लेकर संबंधित पक्ष आपस में चर्चा कर मसले को हल करें।

यदि न्यायालय की जरूरत मध्यस्थता में होती है तो फिर न्यायालय जरूर यह पहल करेगा। सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि यदि दोनों पक्ष सहमत हों तों सरयू नदी के उस पार मस्जिद बनाई जा सकती है लेकिन मंदिर तो वहीं पर बनना चाहिए जहां पर रामलला विराजे हैं। ऐसा कई देशों में हुआ है कि मस्जिदों को तोड़ा गया है।

सऊदी अरब में भी मस्जिद को तोड़ा गया था। मस्जिद को सरयू नदी के पार बनाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि इस मामले में 6 वर्ष से अधिक का समय गुजर गया है लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है। उन्होंने विदेशों के उदाहरण देते हुए कहा कि न्यायपालिका को इस मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसके कौल की बेंच द्वारा कहा गया कि यह मसला काफी संवेदनशील है। ऐसे में दोनों पक्ष आपसी सहमति से ही इसे इल करेंगे तो यह बेहतर होगा। इस मामले में भागीदार को चुना जा सकता है। न्यायालय मध्यस्थता कर सकता है।

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