बांदा: यूपी के बांदा जिले में 316 गौशालाएं हैं, जिनमें करीब 60 हजार गोवंश संरक्षित दिखाए गए हैं, किन्तु यह आंकड़ा सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। वास्तविकता में इन गौशालाओं में गोवंश की संख्या इतनी नहीं है। भले ही प्रति गाय प्रतिदिन के खाने के लिए ₹50 तय हैं, फिर भी शहर के मुख्य मार्गों और गलियों में गायें आवारा घूमती नजर आ रही हैं। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने पिछले कार्यकाल में तिंदवारी कान्हा गौशाला का उद्घाटन किया था तथा जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि प्रत्येक गोवंश के लिए गेहूं का भूसा, चोकर और गुड़ जैसी खाद्य सामग्री की उचित व्यवस्था की जाए। शासन द्वारा गौशालाओं के लिए तय धनराशि पोर्टल के माध्यम से प्रधान, गौसेवक, ग्राम सचिव, डॉक्टर, पशु चिकित्सा अफसर एवं मुख्य विकास अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही जारी की जाती है। कागजों में तकरीबन 60 हजार गोवंश 316 गौशालाओं में संरक्षित दिखाए गए हैं, किन्तु निरीक्षण के पश्चात् यह स्पष्ट हुआ कि इन गौशालाओं में उतने गोवंश नहीं हैं जितने की रिपोर्ट दी गई है। इस मामले में बड़ी अनियमितता सामने आई है। नियम के मुताबिक, 50 गोवंश पर एक देखरेख करने वाला व्यक्ति नियुक्त किया जाता है, जिसे प्रति माह 9,000 रुपये दिए जाते हैं। किन्तु वास्तविकता में, 300 गोवंशों पर 6 कर्मियों का दावा किया गया है, जिनका वेतन 54,000 रुपये महीना बनता है, जबकि कुछ गौशालाओं में सिर्फ 2-3 लोग ही देखे गए हैं। ग्राम प्रधान अपने परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर पैसा निकाल रहे हैं। गोवंशों की देखरेख के लिए सरकार की तरफ से करोड़ों रुपये का बजट जारी किया जाता है। इसमें भूसा, चारा, और गौशालाओं के निर्माण के लिए अलग-अलग धनराशि आवंटित की जाती है। ग्राम सभाओं में भी यह कार्य कराया जा रहा है, किन्तु गौशालाओं में गोवंश की दुर्दशा देखकर दयनीय स्थिति का पता चलता है। ऐसा लगता है जैसे ये गोवंश तालाब के गंदे पानी में बैठे रहने को मजबूर हैं, बिना उचित भोजन के। डॉक्टर भी वक़्त पर गौशालाओं में नहीं पहुंचते, जिससे कई गोवंश बीमार होकर दम तोड़ रहे हैं और कुछ तड़प रहे हैं। गौशालाओं की यह तस्वीरें इन सब बातों का प्रमाण हैं। पैलानी मुख्यालय एवं कमासिन की गौशालाओं में गोवंश की स्थिति को देखकर ऐसा लगता है जैसे ये गौशालाएं नहीं बल्कि उनकी कब्रगाह बन गई हों। वही जब तक जिले के अफसर एवं स्थानीय जनता सहयोग नहीं करेगी, तब तक सनातन धर्म की पूजनीय गौ माता की सुरक्षा असंभव लगती है। यह भी सच है कि इन बेजुबान जानवरों की सहायता की जगह लोग बड़े पैमाने पर घोटाले कर रहे हैं। जो एनजीओ और समाजसेवी पहले आर्थिक तंगी में थे, वे अब लाखों की चमचमाती कारों में घूम रहे हैं। जिला कलेक्टर नागेंद्र प्रताप से इस मामले में बात की गई तो उन्होंने बताया कि हम व्यवस्था सुधारने का प्रयास र रहे हैं तथा लाल मोरम तथा पहाड़ का चूरा डालवाकर गोवंश के लिए सूखी जगह बनाने की योजना है। भारतीय नेता तो नहीं बोले! कनाडा संसद में गूंजा बांग्लदेशी हिन्दुओं के नरसंहार का मुद्दा 'मैं JDU में नहीं हूं...', मंत्री के बयान ने मचाया बवाल 'मेरी दुनिया उजड़ गई', पिता के निधन पर भावुक हुए सांसद पप्पू यादव