भीमा कोरेगांव मामला: 3 सालों बाद जेल में रिहा हुईं सुधा भारद्वाज

भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद जाति हिंसा मामले में आरोपी अधिवक्ता और जानी-मानी आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज मुंबई की भायखला जेल से आज रिहा किया जा चुका हैं। आप सभी को बता दें कि 3 साल से जेल में बंद सुधा भारद्वाज को बीते बुधवार को कोर्ट ने 50 हजार के निजी मुचलके पर उन्हें जमानत दे दी थी। वहीं इससे पहले उनके वकील ने उनकी रिहाई के आदेश तत्काल जारी करने का अनुरोध किया था। यह जानने के बाद अदालत ने कहा कि, 'जरूरी सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।' आप सभी को बता दें कि भारद्वाज को 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था।

खबरों के अनुसार समाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1 दिसंबर को उन्हें रिहा किए जाने का निर्देश दिया था। वहीं अदालत ने एनआईए स्पेशल कोर्ट को उनकी रिहाई की शर्तें और तारीख तय करने का आदेश दिया था। यह सब होने के बाद उन्हें जमानत मिली और अब व जेल से रिहा हो गई है।

किन शर्तों पर जेल से मिली रिहाई-

* सुधा भारद्वाज को मुंबई में ही रहना होगा।

* ट्रायल की तारीखों पर उन्हें अदालत में हाजिर होना पड़ेगा।

* सुधा भारद्वाज मीडिया से भी केस से जुड़ी कोई बात नहीं कर सकती हैं।

* सुधा भारद्वाज को देश छोड़कर भी जाने की अनुमित नहीं है।

आप सभी को यह भी बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर को 2018 भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद जाति हिंसा मामले में वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत दी थी। ऐसा होने के बाद एनआईए ने उनकी जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। यहाँ एनआईए को झटका लगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को एनआईए की याचिका खारिज करते हुए सुधा भारद्वाज की जमानत बरकरार रखी थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'इस मामले में दखल देने की कोई वजह नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने का कोई आधार नहीं है। याचिका खारिज की जाती है।' इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'सुधा भारद्वाज को जमानत देते समय हाईकोर्ट ने प्रक्रियात्मक चूक और देरी पर विचार किया। एक आरोपी डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार है, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैधानिक हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भारद्वाज को दी।'

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