मुफ्त की घोषणाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट कंफ्यूज, कहा- इसे परिभाषित करना पडेगा

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय में Freebie यानी मुफ्त घोषणा वाली योजनाओं पर रोक की मांग को लेकर बुधवार को फिर सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने Freebie मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह परिभाषित करना होगा कि Freebie आखिर क्या है। इसके साथ ही जनता के पैसे को कैसे खर्च किया जाए, हम इसका परीक्षण करेंगे। मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमणा, न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुंच, शिक्षा तक पहुंच को Freebie कहा  जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, हमें यह परिभाषित करने की जरूरत है कि एक Freebie क्या है। क्या हम किसानों को मुफ्त में खाद देने से रोक सकते हैं। इसके बाद CJI ने इस मामले में शनिवार शाम तक सभी पार्टियों से सुझाव दाखिल करने का आदेश देते हुए सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी है। CJI ने सुनवाई के दौरान कहा कि उनका मानना ​​है कि सियासी दलों को वादे करने से नहीं रोका जा सकता है। सरकार का कार्य जनता तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाना है। यहां चिंता जनता का पैसा उचित तरीके से खर्च करने की है। 

प्रधान न्यायाधीश ने कहा यह मामला बहुत पेचीदा है। सवाल यह भी है कि क्या कोर्ट इन मुद्दों की जांच करने के लिए सक्षम है। CJI ने कहा कि सवाल यह है कि एक वैध वादा क्या है? क्या हम कह सकते हैं कि फ्री में वाहन देना कल्याणकारी उपायों के तौर पर देखा जा सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि शिक्षा के लिए मुफ्त कोचिंग भी Freebie है? हमें इसे परिभाषित करना पड़ेगा। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि हमारे पास मनरेगा जैसी योजनाओं के उदाहरण हैं, जो सम्मानजनक रोजगार देती हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसे वादे चुनाव के परिणामों को प्रभावित करते हैं। बता दें कि, इससे पहले एक सुनवाई में देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमणा के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि यदि चुनाव आयोग मुफ्त सामान बांटने वाले दलों को लेकर कुछ नहीं कर सकता है, तो फिर उसे भगवान ही बचाए।  हम सुझाव देते हैं कि फ्रीबीज को नियंत्रित किया जाना चाहिए। यह कैसे किया जाए, इस पर स्टडी होना चाहिए।’ 

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