नई दिल्ली: दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल (LG) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2 जजों की अलग-अलग राय सामने आई है। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा है कि आईएएस की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार उपराज्यपाल को सौंपा जाए जबकि दानिक्स (दिल्ली अंडमान एंड निकोबार, आइसलैंड सिविल सर्विस) से सम्बंधित अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहे। अगर कोई विवाद होता है तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजा जाए। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा है कि, ऐंटी-करप्शन ब्यूरो का अधिकार केंद्र सरकार के पास रहे क्योंकि पुलिस पावर केंद्र सरकार के पास होती है। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति एके सीकरी के नेतृत्व वाली बेंच के सामने अफसरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर, ऐंटी-करप्शन ब्यूरो, सरकारी सेवा आदि को लेकर चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए याचिकाएं दायर की गई थीं। इससे पहले अदालत ने गत वर्ष अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड से सम्बंधित मामले रखे गए हैं। ब्यूरोक्रेट की सर्विस के मामले भी इसके ही अंतर्गत हैं। केंद्र सरकार ने 23 जुलाई 2014 जारी की गई अधिसूचना के तहत दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को सीमित कर दिया था। दिल्ली सरकार के ऐंटी-करप्शन ब्रांच का अधिकार क्षेत्र भी दिल्ली सरकार के अफसरों तक ही सीमित कर दिया गया था। हालांकि, केंद्र सरकार के अधिकारियों को जांच के दायरे से बाहर कर दिया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासक हैं। उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार ने इस अधिसूचना को चुनौती दी थी। वहां से खारिज होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया था। अदालत की संवैधानिक बेंच के फैसले के बाद भी इन मसलों पर गतिरोध बना हुआ है। गत वर्ष 4 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल, मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे। अदालत ने उपराज्यपाल के अधिकार को सीमित कर दिया था। अदालत ने कहा था कि उपराज्यपाल स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे। इसके बाद भी अगर कोई विवाद होता है, तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। उस फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार की तरफ से मामले को उठाया गया। कहा गया था कि सर्विस और ऐंटी-करप्शन ब्रांच जैसे मामले में गतिरोध बरक़रार है और इस मुद्दे पर सुनवाई की आवश्यकता है। वहीं उपराज्यपाल की तरफ से दलील दी गई थी कि उन्हें केंद्र सरकार से अधिकार दिए हुए हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल की पावर बाकी राज्यों के गवर्नर से भिन्न है। संविधान के तहत उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है। प्रशासन में राष्ट्रपति के निर्देश पर ही कार्य करना होगा। दिल्ली सरकार की तरफ से कहा गया था कि, उपराज्यपाल को कैबिनेट की सलाह पर कार्य करना है। जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में हो, तभी वह दिल्ली प्रशासन के अंदर आ जाता है। ऐंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए, क्योंकि सीआरपीसी में ऐसा प्रावधान है। खबरें और भी:- मुलायम के बयान से गदगद हुई भाजपा, आभार जताते हुए लखनऊ में लगाए पोस्टर मात्र 25 वर्ष की आयु में मंत्री बनने वाली सुषमा स्वराज की लव स्टोरी कर देगी आपको हैरान... अपनी ही पार्टी की कार्यकर्ता को दिल दे बैठे थे मुलायम, दोनों का एक बच्चा भी हुआ लेकिन...