नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को कहा कि अतिक्रमण चिंता का विषय है, किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि मॉनिटरिंग कमेटी अपने अधिकारों से बाहर जाकर काम करने लगे। 2006 में मॉनिटरिंग कमेटी का गठन दिल्ली में अवैध निर्माण की पहचान करने और रिहायशी संपतियों के गलत इस्तेमाल की जांच करने के लिए किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमेटी अपने अधिकार क्षेत्र को पार नही कर सकती और अपने प्राधिकार से बाहर जाकर कोई एक्शन नहीं ले सकती। इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी की ओर से अप्रैल, 2019 को दी गई रिपोर्ट, उसके आधार पर की गई सीलिंग और निर्माण ढहाने के लिए जारी नोटिसों को रद्द कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सील की गई संपत्तियों को भी उनके मालिकों को वापस करने के आदेश दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्टने संबंधित अथॉरिटी को तीन दिन के अंदर आदेश का पालन करने को कहा है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 70 पेज के फैसले में कहा कि शीर्ष अदालत ने कभी भी मॉनिटरिंग कमेटी को बिना व्यवसायिक उपयोग वाले रिहायशी परिसरों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार नहीं दिया था। कमेटी को प्राइवेट जमीन पर बनी रिहायशी संपत्तियों के मामले में कार्रवाई करने का कोई अधिकार ही नहीं है। क्या टिक टॉक की खरीदी में ट्रंप बन सकते है बाधा ? अब भारत में दवाओं की भी होम डिलीवरी करेगा Amazon, इस शहर से होगी शुरुआत 15 अगस्त को 'वन नेशन वन हेल्थ कार्ड' लांच कर सकते हैं पीएम मोदी, आपको होगा ये बड़ा फायदा