सभी देशवासियों पर लागू होगा एक ही 'कानून' ! सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 3 हफ़्तों में माँगा जवाब

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (5 सितम्बर) को केंद्र सरकार से देश में समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने की व्यवहार्यता पर तीन हफ़्तों के अंदर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। बता दें कि देश के चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की एक बेंच शादी की उम्र, तलाक के आधार, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए कानूनों में एकरूपता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि, 'ये याचिकाएं शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और मेंटिनेंस कानूनों में एकरूपता की मांग कर रही हैं। इन बातों में क्या अंतर है? ये सभी समान नागरिक संहिता के पहलू हैं।' याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने तीन हफ्तों के अंदर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय और एक अन्य याचिकाकर्ता लुबना कुरैशी द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं के एक समूह ने विभिन्न धर्मों के लिए प्रचलित तलाक, विवाह, उत्तराधिकार, गोद लेने और मेंटिनेंस पर विभिन्न कानूनों में कमियों की ओर इशारा किया है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में इन तमाम कानूनों में एकरूपता लाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि व्यभिचार के लिए हिंदुओं, ईसाइयों और पारसियों के लिए तलाक का एक आधार है, मगर मुसलमानों के लिए ऐसा नहीं है। इसी प्रकार कुष्ठ बीमारी हिंदुओं और मुसलमानों के लिए तलाक का आधार है, मगर ईसाइयों और पारसियों के लिए यह नहीं। उन्होंने कहा कि कम उम्र में विवाह हिंदुओं के लिए तलाक का आधार है, मगर ईसाइयों, पारसियों और मुस्लिमों के लिए नहीं है।

अश्विनी उपाध्याय की याचिका में यह भी कहा गया है कि तमाम धर्मों की महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे धार्मिक प्रथाएं, जो लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती हैं, उनकी रक्षा नहीं की जानी चाहिए। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह अनिवार्य रूप से कानून का प्रश्न होगा। यदि आवश्यकता पड़ी, तो हम तीन हफ्ते में जवाब देंगे।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का विरोध शुरू :-

इन याचिकाओं का विरोध करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और एक मुस्लिम महिला अमीना शेरवानी ने सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं का विरोध किया है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले दरवाजे से UCC लाने की कोशिश की जा रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि उपाध्याय ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक रिट याचिका में इसी तरह की मांग की थी, जिसे उन्होंने बाद में वापस ले लिया था। उन्होंने ने कहा कि अश्विनी उपाध्याय ने बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के सामने UCC को लागू करने की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की थी, जो अभी भी लंबित है। 

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