नई दिल्ली: हिंदू, बौद्ध, जैन और बौद्ध धर्म के संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत ने सभी धर्म-मजहब के स्थलों के लिए एक जैसा कानून बनाने यानी समान धर्मस्थल संहिता की मांग पर चार हफ़्तों में सरकारों को हलफनामा दायर करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की दो सदस्यीय पीठ ने मामले को छह सप्ताह बाद अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। इसके साथ ही अन्य पीठ के सामने लंबित याचिकाओं को इसी पीठ के समक्ष ने पेंडिंग स्वामी दयानंद सरस्वती की याचिका के साथ संबद्ध कर दिया है। बता दें कि, चीफ जस्टिस (CJI) यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष इसी मुद्दे पर वकील अश्विनी उपाध्याय समेत अन्य की याचिका लंबित है। समान धर्मस्थल संहिता की मांग करने वाली याचिकाओं में मांग की गई है की हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख अपने धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन और प्रशासन बगैर राज्य सरकार के दखल के कर सकें, जैसा कि मुस्लिमों और ईसाईयों द्वारा किया जाता है। याचिकाओं में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पुडुचेरी, तेलंगाना सहित कई राज्यों के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार ने 58 मुख्य मंदिरों को अपने कब्जे में ले रखा है। यह सीधे तौर पर संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। यह अंग्रेजों के वक़्त का कानून है और अब सरकार चर्च और अन्य धर्मिक स्थलों को अपने कंट्रोल में क्यों नहीं लेना चाहती है। याचिकाओं में कहा गया है कि हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध धार्मिक संस्थाओं की देखरेख और प्रबंधन का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। मगर मुस्लिम, पारसी और ईसाई अपनी संस्थाओं को खुद कंट्रोल करते हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि मठ मंदिरों पर नियंत्रण करने के लिए 35 कानून मौजूद हैं, मगर मस्जिद, मजार, दरगाह और चर्च के लिए एक भी कानून नहीं है। 4 लाख मठ-मंदिर सरकार के नियंत्रण में है, मगर मस्जिद मजार चर्च दरगाह एक भी नहीं हैं। 'यूपी+ बिहार= गई मोदी सरकार..', उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ शुरू हुआ पोस्टर वॉर प्रदेश में घोटाले पर सियासत जारी, कांग्रेस-भाजपा ने एक दूसरे पर बोला हमला राजस्थान कांग्रेस में टूट के आसार, नाराज़ विधायकों को मनाने में जुटे सीएम अशोक गहलोत