'अगर मोबाइल में मिला चाइल्ड पोर्न..', सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें इसे देखना और डाउनलोड करना अपराध करार दिया गया है। यह निर्णय मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व निर्णय को पलटते हुए दिया गया, जिसमें कहा गया था कि केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध नहीं है।

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा की गई थी। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि केंद्र सरकार से आग्रह किया गया है कि बाल अश्लीलता के स्थान पर बाल यौन शोषण संबंधी सामग्री (child sexually abusive and exploitative material - CSAEM) को शामिल करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया जाए। साथ ही, हाई कोर्ट को चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का उपयोग न करने का भी निर्देश दिया गया है।

यह फैसला एनजीओ "जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन एलायंस" की याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। मद्रास हाई कोर्ट ने मोबाइल फोन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने के आरोप में एक 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया था, जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार की चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना अपराध है और इसे गंभीर त्रुटि मानते हुए मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को अस्वीकार कर दिया। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के प्रति संवेदनशीलता और सख्ती बढ़ाई जाएगी, और ऐसे मामलों में कानूनी दायित्वों को स्पष्ट किया जाएगा।

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