इस विदेशी रेस्टोरेंट में सवा सौ साल से परोसा जा रहा सिर्फ शाकाहारी भोजन

स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में स्थित हॉस हितल रेस्त्रां जिसकी स्थापना 1898 में हुई थी अपने आप में कुछ खास है. करीब सवा सौ साल पहले स्थापित हुए इस रेस्त्रां में केवल शाकाहारी और वेगन (मांसाहार और दूध की बनी चीजों को छोड़कर) व्यंजन परोसे जाते है. वैसे तो आजकल ऐसे कुछ रेस्टोरेंट हैं जहां पर दोनों तरह के खाना परोसा जाता है. यहां के खाने में भारतीय, एशियाई, भूमध्यसागरीय और स्थानीय स्विस चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. हॉस हितल की ज्यूरिख में आठ ब्रांच हैं. मुख्य होटल में कई मंजिलें हैं. पहली मंजिल पर आ ला कार्त रेस्त्रां हैं, जहां एक दीवार पर कई शेल्फ बने हुए हैं और उनमें खाने की किताबें रखी हुई हैं.   बता दें, स्विट्जरलैंड में नॉन-वेज काफी पसंद किया जाता है. द कलिनरी हेरिटेज ऑफ स्विट्जरलैंड के लेखक पॉल इमहॉफ कहते हैं कि पूरे मध्य यूरोप के खाने में मांस एक अहम स्थान रखता है. इसे आमतौर पर लोगों की आय से जोड़कर देखा जाता है. मांस से इतर आलू, चीज और कंद का इस्तेमाल होता है, लेकिन बेहद कम. हितल वेज्जी को सम्मान इसलिए हासिल है क्योंकि रेस्त्रां में कभी भी नॉन-वेज परोसने को लेकर नहीं सोचा गया. 19वीं सदी के अंत में हितल वेज्जी की जब स्थापना हुई थी, तब जर्मनी से प्रभावित एक नॉन-वेज रेस्त्रां का बोलबाला था. उस दौरान स्विट्जरलैंड के रसूखदार शाकाहारी लोगों का मजाक उड़ाते थे. 

इसकी स्थापना की भी अजीब कहानी है. रेस्त्रां की स्थापना की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इसकी स्थापना जर्मन टेलर एम्ब्रोसियस हितल ने की थी. उस वक्त 24 साल के हितल को डॉक्टर ने गंभीर आर्थराइटिस की शिकायत बताई थी. साथ ही कहा था कि जितनी जल्दी हो सके, नॉन-वेज छोड़ दो नहीं तो जल्दी मौत हो जाएगी. उस वक्त मांस रहित खाना आमतौर पर नहीं मिलता था. हितल को बड़ी मुश्किल से एक रेस्त्रां एब्सटिनेंस कैफे मिला, जो ज्यूरिख का अकेला शाकाहारी रेस्त्रां था.

एम्ब्रोसियस को इस रेस्त्रां के शाकाहारी व्यंजन भा गए और उनकी रिकवरी भी होने लगी. साथ ही एम्ब्रोसियस को वहां की कुक मार्था न्यूपेल से प्यार हो गया और शादी कर ली. 1904 में उन्होंने रेस्त्रां का नाम बदलकर हॉस हितल कर दिया.

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