'केजेहल्ली और डीजेहल्ली दंगों के केस भी वापस लो..', कांग्रेस सरकार से बोले रोशन बेग

बैंगलोर: कर्नाटक सरकार ने हाल ही में हुबली दंगों से जुड़े मुस्लिम अपराधियों के मामलों को वापस लेने का फैसला किया है, जिससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। खासकर भाजपा ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है और इसे "तुष्टिकरण की रणनीति" बताते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। भाजपा का कहना है कि यह निर्णय सरकार के दोहरे मापदंड को दिखाता है और इसे वोट बैंक की राजनीति करार दिया है। जहाँ एक तरफ मुस्लिम आरोपियों के केस वापस ले लिए गए, वहीं हिजाब के विरोध में प्रदर्शन करने वाले हिन्दू छात्रों पर मुक़दमे जारी रहने दिए गए। 

इसी बीच, राज्य की कांग्रेस सरकार से यह मांग की जा रही है कि केजे हल्ली और डीजे हल्ली दंगों के आरोपियों को भी इसी तरह की राहत दी जाए। इस पर राज्य के गृह मंत्री डॉ. जी. परमेश्वर और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने इन मामलों की समीक्षा करने का इरादा जताया है। यह मांग पूर्व मंत्री रोशन बेग की ओर से आई थी, जिन्होंने कहा कि इनमें कई युवाओं को शामिल किया गया है और उनके लिए नरमी बरतनी चाहिए। रोशन बेग ने बताया कि हुबली दंगों के मामलों को पहले ही वापस लिया जा चुका है, इसलिए अब उनके समुदाय के लोग भी यही चाहते हैं कि केजे हल्ली-डीजे हल्ली मामलों में भी इसी तरह का कदम उठाया जाए। उनका कहना है कि इसमें शामिल कई युवा निर्दोष हैं, और उन पर केवल मामूली आरोप हैं, इसलिए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि लोग उन लोगों को माफ़ी नहीं मांग रहे जो हिंसा में लिप्त थे, बल्कि सिर्फ़ उन लोगों को राहत देने की मांग कर रहे हैं, जो गलत तरीके से फंसाए गए हैं या जिन पर मामूली आरोप हैं।

बता दें कि, केजे हल्ली और डीजे हल्ली दंगे अगस्त 2020 में बेंगलुरु में हुए थे। इन दंगों में मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने पुलिस स्टेशनों पर हमला किया, वाहनों को जलाया, और कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवासमूर्ति के घर सहित कई संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया। हिंसा एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण भड़की थी, जिसमें कथित रूप से एक धार्मिक व्यक्ति का अपमान किया गया था। इस घटना के कारण व्यापक हिंसा हुई, जिसमें चार लोगों की जान गई और पुलिस कर्मी घायल हुए। हालाँकि, अब कांग्रेस विधायक के घर पर और पुलिस थाने पर हमला करने वाले मुस्लिम आरोपियों के केस वापस लेने की मांग कांग्रेस सरकार से ही हो रही है और कांग्रेस नेता ही कर रहे हैं। हुबली दंगों का केस तो कांग्रेस सरकार पहले ही वापस ले चुकी है, अब माना जा रहा है कि वो समुदाय विशेष को खुश करने के लिए बैंगलोर दंगे से जुड़े मामले भी वापस ले सकती है, क्योंकि कुछ ही समय में महाराष्ट्र-झारखंड में चुनाव हैं, जहाँ उसे मुस्लिम समुदाय के वोट चाहिए होंगे। 

हालाँकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने दंगों की जांच करते हुए इसे एक बड़ी साजिश करार दिया था। NIA के अनुसार, यह साजिश प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) और उसकी राजनितिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के नेताओं ने रची थी। NIA ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये दंगे एक योजना के तहत सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए किए गए थे। फिरोज पाशा और मुजम्मिल पाशा जैसे नेताओं पर धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाकर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया।

हुबली दंगों से जुड़े मामलों को वापस लेने के राज्य सरकार के कदम पर भाजपा नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा विधायक अरागा ज्ञानेंद्र ने इसे सरकार की "दोहरी नीति" बताया और कहा कि वे एक समुदाय को खुश करने के लिए नियमों को तोड़-मरोड़ रहे हैं। भाजपा का कहना है कि इस फैसले से राज्य में कानून व्यवस्था कमजोर होगी और गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। इस विवाद के बाद कर्नाटक में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। कई लोगों का मानना है कि राज्य सरकार का यह कदम संभावित रूप से एक मिसाल बन सकता है, जिससे अन्य मामलों में भी इसी तरह का फैसला लिया जा सकता है। 

रोशन बेग ने सरकार से अपील की है कि अगर निर्दोष युवाओं पर UAPA (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत आरोप लगाए गए हैं, तो उन्हें बिना उचित सुनवाई के जेल में रखना ठीक नहीं है। बेग ने मानवाधिकार संगठनों से संपर्क करने की भी बात कही, ताकि इन युवाओं को न्याय मिल सके। इस मुद्दे पर राज्य की कांग्रेस सरकार, खासकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर विपक्ष का दबाव बढ़ता जा रहा है। विपक्ष के बढ़ते विरोध के बावजूद, सीएम सिद्धारमैया ने अभी तक इस पर स्पष्ट रुख नहीं लिया है। यह देखा जाना बाकी है कि सरकार इस मामले को किस तरह सुलझाएगी और क्या यह विवाद राजनीतिक लड़ाई को और बढ़ा देगा।

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