तालिब एक पश्तो शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र)। ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा को मानते हैं। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को इसकी सदस्यता मिलती है। इन्ही तालिबों का संगठन हैं तालिबान, जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी। आज अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना बुलाए जाने के बाद, तालिबान ने पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है और राष्ट्रपति अशरफ गनी के इस्तीफे के बाद तालिबान वहां का सर्वेसर्वा बन चुका है। तालिबान शासन आते ही, अफ़ग़ानिस्तान में खूनी खेल शुरू हो चुका है और अफगानी लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट बताती है कि 2021 के पहले 3 महीनों में तालिबान की वजह से 229 नागरिकों की मौत हुई है, हालाँकि, यह आंकड़ा काफी कम है। तालिबान के खौफ का आलम यह है कि लोग अफ़ग़ानिस्तान से बाहर जाने की कोशिश में प्लेन में जगह न मिलने पर उसके टायरों पर लटक रहे हैं, इसी कोशिश में कल 16 अगस्त को 3 लोगों की मौत भी हो चुकी है। Three Kabul residents who were trying to leave the country by hiding next to the tire or wing of an American plane, fell on the rooftop of local people. They lost their lives due to the terrible conditions in Kabul. pic.twitter.com/Cj7xXE4vbx — Tariq Majidi (@TariqMajidi) August 16, 2021 दरअसल, देखा जाए तो अफ़ग़ानिस्तान की आवाम के लिए बुरे दिन अब शुरू हो चुके हैं। क्योंकि अमेरिका, अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना हटा चुका है और तालिबान के कब्जे के बाद देश में लोकतंत्र तो क्या मानवाधिकार भी पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है। हाल ही में तालिबान ने एक 21 वर्षीय युवती को केवल इसीलिए मार डाला क्योंकि उसने हिजाब नहीं पहना था। तालिबान ऐसा क्यों कर रहा है, इसे समझने के लिए हमें तालिबान की विचारधारा को समझना होगा। दरअसल, इससे पहले तालिबान ने साल 1996 से 2001 तक अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया है। इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम का शरिया कानून लागू था। जिसके तहत महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गईं थी। सजा देने के वीभत्स तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा था। लेकिन अब तालिबान ने पुनः सत्ता हथियाने के लिए जमीनी जंग का रास्ता चुना और वह इसमें कामयाब भी हो चुका है। ऐसे में तालिबान वही पाबंदियां वापस से लागू कर रहा है, जो उसने अपने पूर्व के कार्यकाल में की थी। कुछ ऐसा होगा तालिबानी कानून:- 1- तालिबान के शासन में अफगानी पुरुषों के लिए बढ़ी हुई दाढ़ी और महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य होगा। 2- टीवी, म्यूजिक, सिनेमा पर पाबंदी होगी। 3- तालिबान ने 1996 में शासन में आने के बाद लिंग के आधार पर कड़े कानून बनाए थे, जिसके अनुसार अफगानी महिला को नौकरी करने की इजाजत नहीं दी जाती थी। 4- दस उम्र की उम्र के बाद लड़कियों के लिए स्कूल जाने पर मनाही होगी। लड़कियों के लिए सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद होंगे। 5- किसी पुरुष रिश्तेदार के बगैर घर से बाहर जाने पर महिला का बहिष्कार कर दिया जाएगा। 6- पुरुष डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिला और लड़की का बहिष्कार कर दिया जाएगा। इसके साथ महिलाओं पर नर्स और डॉक्टर्स बनने पर पाबंदी थी। 7- तालिबान के राज में प्रेमी के साथ भागने वाली महिलाओं को भीड़ में पत्थरों से मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था। 8- घर में गर्ल्स स्कूल चलाने वाली महिलाओं को उनके पति, बच्चों और छात्रों के सामने गोली मार दी जाती थी। 9- गलती से बुर्का से पैर दिख जाने पर कई महिलाओं को बुरी तरह पीटा जाता था। 10- तालिबान के शासन में इतनी पाबंदियों के चलते महिलाओं में डिप्रेशन बढ़ गया था, जिसके कारण आत्महत्या के मामले तेज़ी से बढे थे। Kabul moment! pic.twitter.com/nj5WKiH9dM — Lotfullah Najafizada (@LNajafizada) August 16, 2021 हालांकि, इतना सब होने के बाद भी दुनियाभर में मानवाधिकार और महिला सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी मौन धारण किए हुए बैठे हैं। 57 इस्लामी देशों का समूह (OIC) भी इस्लाम के नाम पर हो रहे इस रक्तपात को मूक दर्शक बने देख रहा है, जबकि इस नरसंहार के सबसे अधिक शिकार मुस्लिम ही हो रहे हैं। हज़ारों महिलाओं-बच्चियों पर जुल्म हो रहे हैं और पूरी दुनिया तमाशा देख रही है। ये सब देखने के बाद यकीन नहीं होता कि क्या हम वाकई 21वीं सदी में जी रहे हैं ? कई शहरों में 100 के पार हुए पेट्रोल-डीजल के दाम, जानिए आज का भाव 'मस्जिद में राष्ट्रगान गाना और तिरंगा फहराना हराम..,' आगरा के मौलाना ने निकाला फतवा यूरोपीय परिचालन के लिए 3,000 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय किया निर्धारित