सद्गुरु जग्गी वासुदेव के आश्रम में तमिलनाडु पुलिस ने भेज दी पूरी बटालियन, जानिए क्यों?

कोयम्बटूर: सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन ने कहा है कि वह लोगों पर शादी करने या संन्यास लेने के लिए कोई दबाव नहीं डालता। यह बयान मंगलवार (1 अक्टूबर, 2024) को कोयम्बटूर के थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन में पुलिस के सैकड़ों जवानों तथा अफसरों के पहुंचने के पश्चात् आया। पुलिस टीम संस्थान में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के तहत पहुंची थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार को पुलिस के चार बड़े अफसरों समेत 150 जवानों की टीम थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन के अंदर गई थी। इस पुलिस टीम ने आश्रम में रहने वाले लोगों का सत्यापन किया तथा अंदर के तौर-तरीकों की जानकारी भी ली। यह जांच बुधवार (2 अक्टूबर, 2024) को भी जारी है। पुलिस टीम ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पूर्व में दर्ज किए गए मामलों की जानकारी इकट्ठा करना भी शुरू कर दिया है। इसके साथ ही समाज कल्याण और बाल कल्याण विभाग के अफसरों ने भी आश्रम में जांच के लिए प्रवेश किया। यह पुलिस जांच मद्रास उच्च न्यायालय में सुनवाई के पश्चात् आरम्भ हुई है। सोमवार (30 सितंबर, 2024) को मद्रास हाई कोर्ट में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दायर की गई एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई हुई थी। इस याचिका में एक वरिष्ठ नागरिक ने आरोप लगाया कि उसकी दो बेटियों को आश्रम में कैद कर लिया गया है और उन्हें बाहर नहीं आने दिया जाता। उन्होंने यह भी कहा कि वहां ऐसा खाना और दवाइयाँ दी जाती हैं, जिससे लोगों की क्षमताएँ कम हो जाती हैं।

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि उनकी बेटियों का आश्रम में जाने से पहले अच्छा करियर था, मगर वहां जाने के पश्चात् उनका करियर ठप हो गया। याचिकाकर्ता का कहना था कि सद्गुरु जग्गी का आश्रम लोगों को सामान्य जीवन छोड़कर साधु बनने के लिए ब्रेनवाश करता है। यह भी आरोप लगाया गया कि इस के चलते लोगों को उनके परिवार से मिलने नहीं दिया जाता तथा उनका बाहरी दुनिया से संपर्क काट दिया जाता है। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में सद्गुरु जग्गी वासुदेव एवं ईशा फाउंडेशन को आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने कहा, "हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी तथा उसका जीवन अच्छे से स्थापित कर दिया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांत में जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है?"

मद्रास उच्च न्यायालय की सुनवाई के चलते याचिकाकर्ता की दोनों बेटियाँ भी मौजूद थीं। बेटियों ने दावा किया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम के भीतर हैं तथा उन्होंने दबाव की बात मानने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता की बेटियों को भी आड़े हाथों लिया तथा कहा कि जो लोग संत बनते हैं वे सभी से प्रेम करते हैं, लेकिन ये दोनों महिलाएँ अपने पिता से बदतमीजी से बात कर रही हैं और उनसे घृणा रखती हैं। कोर्ट ने पूछा कि क्या अपने परिजनों से घृणा रखना पाप नहीं है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका में किए गए गंभीर दावों के आधार पर प्रशासन को आदेश दिया है कि वह ईशा फाउंडेशन के आश्रम के भीतर जांच करे तथा  इसकी रिपोर्ट न्यायालय के सामने पेश करे। इस दौरान ईशा फाउंडेशन ने न्यायालय में कहा कि वह किसी से संन्यास लेने को नहीं कहते। इस संबंध में ईशा फाउंडेशन ने एक प्रेस रिलीज भी जारी की है।

फाउंडेशन ने कहा, "ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग तथा आध्यात्मिकता प्रदान करने के लिए की थी। हमारा मानना ​​है कि वयस्क व्यक्ति को अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और समझ है। हम लोगों से शादी करने या साधु बनने के लिए नहीं कहते, क्योंकि ये व्यक्तिगत इच्छाएँ हैं। ईशा योग केंद्र में हजारों लोग रहते हैं जो साधु नहीं हैं, और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य या संन्यास लिया है।" ईशा फाउंडेशन ने याचिकाकर्ता पर भी कई आरोप लगाए हैं। ईशा फाउंडेशन ने बताया कि याचिकाकर्ता ने एक बार झूठी जानकारी के आधार पर आश्रम में घुसने की कोशिश की थी। फाउंडेशन ने कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज किए गए मामलों के अतिरिक्त उनके खिलाफ कोई अन्य मुकदमा दर्ज नहीं है।

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