जम्मू-कश्मीर : घाटी के हालात आज जैसे है है वैसे सिर्फ कुछ सालों से नहीं है बटवारें के बाद से ही कश्मीर जो की धरती का स्वर्ग कहा जाता है बारूदों और गोलीबारी के साये में जिता आया है. असला के किये हमलों से अब यहाँ की अवाम नहीं डरती वो, डरती है उस नफरत से, उस दहशत से जो कश्मीर की आबो हवा में घुल चुकी है और जिसमे कश्मीर की कई पीढ़िया जी रही है. सेना के कैंपों और अस्पतालों आदि पर आतंकवादी हमले की ये घटनाएं भी पहली नहीं हैं, लेकिन इलाज के आभाव में जख्मों का नासूर बन जाना चिंता का विषय है. अभी गत दिनों ही जेल में बंद लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तान से आए आतंकवादी को छुड़ाने के लिए कम से कम दो आतंकवादियों का अस्पताल परिसर में छिप कर घुस आना एक चिंता की बात है ये इशारा है कि घाटी में कोई सुरक्षित स्थान नहीं है, आतंकवादी खतरे के अनुसार प्रतिरोध का इंतजाम करते हैं मगर सरकार ऐसा नहीं करती. महबूबा मुफ्ती सरकार ने कहा वे न तो पाकिस्तान समर्थक हैं और न ही भारत समर्थक, वे खुद के समर्थक हैं और उन्होंने इस्लामाबाद को यह साफ बता दिया है कि उनका आंदोलन अपना वजूद तैयार करने के लिए है. हैरत की बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने यह कहकर कि नौजवान इस्लाम की नई पहचान हैं, इसमें धर्म को घुसा दिया है. सबके अपने अपने मत है मगर सवाल आज भी यही है ये हालात, ये बारूदों का दौर आखिर कब तक. शहीदों की अंतिम विदाई में छलकी सभी की आँखे शहीदों में छह में से पांच मुस्लिम, मोदी खाते है पाक की बिरयानी- ओवैसी पाक को सेना की खुली चेतावनी