बांग्लादेश में सत्ता बदलते ही आतंकी लीडर रहमानी रिहा, भारतीय नेता कह रहे- यहाँ भी ऐसा ही होगा !

ढाका: 18 अगस्त को बांग्लादेश की मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने अलकायदा से प्रेरित आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) के प्रमुख मुफ्ती जशीमुद्दीन रहमानी को गाजीपुर के काशिमपुर हाई-सिक्योरिटी सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया । मीडिया से बात करते हुए काशिमपुर जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक सुब्रत कुमार बाला ने कहा कि, "हमने रहमानी को रविवार दोपहर करीब 1:15 बजे रिहा कर दिया क्योंकि उसने अपने खिलाफ दर्ज सभी मामलों में जमानत ले ली थी।"

उनकी रिहाई के बाद अभियोजन पक्ष के वकीलों और आतंकवाद निरोधक अधिकारियों ने अपनी चिंताएं व्यक्त कीं क्योंकि रहमानी एक प्रमुख व्यक्ति हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, उनकी रिहाई से आतंकी खतरे बढ़ेंगे और आतंकवाद निरोधक अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई में बाधा उत्पन्न होगी। 12 अगस्त 2013 को रहमानी को लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप में बरगुना में गिरफ़्तार किया गया था। अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के 30 सदस्यों को भी गिरफ़्तार किया गया था। 2013 में गिरफ़्तारी के बाद से रहमानी जेल में ही हैं। उन पर छह अलग-अलग मामले चल रहे हैं और पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ सभी मामलों में चार्जशीट दाखिल कर दी है।

31 दिसंबर 2015 को ढाका की एक अदालत ने ब्लॉगर राजीब हैदर की हत्या से जुड़े एक मामले में उन्हें पांच साल की सजा सुनाई थी। यह मामला पल्लबी पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। उन्होंने इस मामले में अपनी सजा पूरी कर ली है। इस मामले के अलावा मोहम्मदपुर पुलिस स्टेशन में दो, गुलशन पुलिस स्टेशन में एक, बरगुना सदर पुलिस स्टेशन में एक और उत्तरा पश्चिम पुलिस स्टेशन में एक मामला दर्ज किया गया था। इन सभी मामलों में मुकदमा लंबित है। दो मामलों में उन्हें 2020 और 2022 में ढाका के आतंकवाद-रोधी विशेष न्यायाधिकरण द्वारा जमानत दी गई थी। 2022, 2023 और जनवरी 2024 में उन्हें अन्य तीन मामलों में जमानत दी गई थी।

मीडिया से बात करते हुए आतंकवाद निरोधक और संक्रमणकालीन अपराध इकाई के प्रमुख मोहम्मद असदुज्जमां ने कहा कि उनकी रिहाई सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, "हम अब रहमानी को ट्रैक करने की कोशिश कर रहे हैं और वह हमारी निगरानी में रहेगा। और हमें विश्वास है कि हम किसी भी अप्रिय स्थिति को टालने में सक्षम होंगे।"

ढाका में आतंकवाद निरोधक विशेष न्यायाधिकरण के सहायक सरकारी वकील गुलाम शरूआर खान ने कहा कि उनकी रिहाई से चल रहे मुकदमों पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, "चूंकि रहमानी को जमानत पर रिहा किया गया है...इससे मुकदमों पर असर पड़ने की संभावना है। अभियोजन पक्ष के गवाह आरोपी के खिलाफ गवाही देने के लिए अदालत जाने से डर सकते हैं। हम गवाहों को अदालत के सामने पेश करने और लंबित मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश करेंगे।"

अंसारुल्लाह बांग्ला टीम ने फरवरी 2013 में राजीब हैदर की हत्या के बाद सुर्खियाँ बटोरीं। मई 2015 में, बांग्लादेश सरकार ने संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया। कथित तौर पर, समूह ने कम से कम चार ब्लॉगर्स और लेखकों की हत्या की है। वे 2016 में एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ता जुलहाज मन्नान और उनके दोस्त खांडोकर महबूब रब्बी टोनॉय की हत्या में भी शामिल थे।

भारत में भी सक्रीय है अंसारुल्लाह बांग्ला टीम

उल्लेखनीय है कि 2017 में भारत में पैर जमाने की कोशिश कर रहे  पांच एबीटी आतंकवादियों को असम में पकड़ा गया था। जुलाई 2022 में, असम में एबीटी से जुड़े दो मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया गया। 2022 में फिर से, एबीटी से जुड़े दो इमामों को गिरफ्तार किया गया। दोनों इमामों को असम में गोलपारा पुलिस ने अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) और इस्लामिक आतंकवादी समूह अल कायदा भारतीय उपमहाद्वीप के खिलाफ व्यापक आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत गिरफ्तार किया  था। पुलिस द्वारा कई घंटों तक पूछताछ करने के बाद, तिलपारा नतून मस्जिद के इमाम जलालुद्दीन शेख (49) और मोरनोई के टिंकुनिया शांतिपुर मस्जिद के इमाम अब्दुस सुभान (43) दोनों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया।

अधिकारियों ने बताया कि जब दोनों इमामों के घरों की तलाशी ली गई तो उन्हें अलकायदा भारतीय उपमहाद्वीप (AQIS) से जुड़े कई महत्वपूर्ण सबूत मिले, साथ ही जिहादी साहित्य, पोस्टर, किताबें और मोबाइल फोन, सिम कार्ड और आईडी कार्ड सहित अन्य सामग्री भी मिली। गिरफ्तार किए गए दोनों लोग बारपेटा और मोरीगांव में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) इकाइयों के साथ नियमित रूप से संपर्क में थे।

अगस्त 2022 में असम के मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पुलिस ने बांग्लादेशी अप्रवासियों के कई जिहादी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा से जुड़ा अंसारुल्लाह बांग्ला टीम राज्य में सबसे अधिक सक्रिय रहा है। पिछले छह महीनों में राज्य में एबीटी के पांच मॉड्यूल पकड़े गए हैं। इन समूहों का भंडाफोड़ असम पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जुटाई गई खुफिया सूचनाओं के आधार पर किया गया। बता दें कि बांग्लादेश में भीड़ द्वारा सत्ता पलटने को भारतीय विपक्ष एक मौके की तरह देख रहा है और कई नेताओं के बयान हैं कि भारत में भी ऐसा ही होगा, लेकिन उनसे पुछा जाना चाहिए कि बांग्लादेश में जिस तरह सत्ता परिवर्तन के बाद कट्टरपंथ और आतंकवाद बढ़ा है, क्या वे भारत में भी ऐसा ही चाहते हैं ? क्या वे सिर्फ सत्ता के लिए पूरे देश को कट्टरपंथ की आग में झोंकने के लिए तैयार हैं ?

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