नई दिल्ली: एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बढ़ते प्रदूषण को साइलेंट किलर बताया है। उन्होंने कहा कि पहले प्रदूषण के कारण केवल फेफड़ों और दिल को खतरा होता था। मगर अब यह साबित हो गया है कि हवा में उपस्थित छोटे-छोटे प्रदूषक हमारे खून में घुल जाते हैं, जिससे लोगों में स्ट्रोक, डिमेंशिया एवं अन्य डिसऑर्डर का संकट बना रहता है। डॉ. गुलेरिया ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि अब प्रदूषण का प्रभाव बहुत घातक होता जा रहा है। हम इसके परिणामों पर गौर करते हैं। प्रदूषण के कारण बुजुर्ग एवं बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। चिकित्सालय जाने वाले बुजुर्गों और बच्चों का आँकड़ा बढ़ गया है। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं जो इस सीजन में खराब हवा के कारण कुछ दिनों के लिए दिल्ली छोड़कर देश के अन्य भागों में चले जाते हैं। डेटा से पता चला है कि प्रदूषण से हार्ट अटैक की घटनाएं भी बढ़ी हैं क्योंकि इससे खून की धमनियों में सूजन आ जाती है। वही गुलेरिया ने बदतर होती जा रही हवा के प्रभाव पर कहा है कि हमारे अध्ययन से पता चला है कि दिन के ज्यादातर वक़्त दिल्ली का एक्यूआई या तो खराब, बहुत खराब या बेहद खराब रहता है। उत्तर भारत में रह रहे लोग निरंतर खराब हवा में सांस ले रहे हैं तथा इसका उनकी पूरी सेहत पर प्रभाव नजर आना आरम्भ हो गया है। इससे हार्ट अटैक एवं श्वास संबंधी परेशानियों की बहुत दिक्कतें हो रही है। प्रदूषण के कारण बच्चों के फेफड़े प्रभावित होते हैं। फेफड़ों का विकास 20 वर्ष की आयु तक होता है तथा यदि आप दूषित हवा ले रहे हैं तो फेफड़ों की क्षमता खराब होती चली जाती है। उन्होंने कहा कि अध्ययन बताते है कि दक्षिण भारत के बच्चों के मुकाबले दिल्ली में बड़े हो रहे बच्चों के फेफड़े ज्यादा खराब होते हैं। अध्ययन यह भी कहता है कि दिल्ली में रहना दिल संबंधी बीमारियों के लिए जोखिमभरा है। पहले प्रदूषण के कारण केवल फेफड़ों और दिल को खतरा होता था। मगर अब यह साबित हो गया है कि हवा में मौजूद छोटे-छोटे प्रदूषक हमारे खून में घुल जाते हैं, जिससे स्ट्रोक, डिमेंशिया एवं अन्य डिसऑर्डर का खतरा बना रहता है। कलेक्टर ने किया जोबट विपणन सहकारी संस्था का दौरा सायबर टीम ने बरामद किये लाखों की कीमत के गुम हुए मोबाइल फोन UP में हुआ दर्दनाक हादसा, सड़क पर बिछी लाशें