बस दिवाली पर खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, साल भर जलता है दीपक

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है, और यहां कई चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर हैं। इन मंदिरों में कुछ अद्भुत रहस्य छिपे हैं, जिन्हें वैज्ञानिक और विद्वान भी अब तक नहीं सुलझा पाए हैं। ऐसे ही मंदिरों में से एक है हसनंबा मंदिर, जो कर्नाटक के हासन जिले में स्थित है। हसनंबा मंदिर अपने रहस्यमयी चमत्कारों और दिव्य शक्तियों के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसके कपाट केवल दिवाली के समय ही खोले जाते हैं, और इस दौरान किए गए विशेष अनुष्ठानों और प्रक्रियाओं के कारण यहां कुछ अनोखे चमत्कार देखने को मिलते हैं। इस लेख में हम हसनंबा मंदिर से जुड़े तथ्यों, रहस्यों, अनुष्ठानों और पौराणिक कहानियों को विस्तार से जानेंगे।

हसनंबा मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। इसे पहले 'सिहामासनपुरी' के नाम से जाना जाता था, जो इसके प्राचीन महत्व को दर्शाता है। यह मंदिर मां जगदंबा को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग 'हसनंबा' कहते हैं। 'हसन' का अर्थ 'हंसने वाली' और 'अंबा' का अर्थ 'मां' होता है, अर्थात् 'हंसती हुई मां'। इस मंदिर का स्थापत्य और यहां की मूर्तियां वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती हैं। मान्यता है कि यहां मां हसनंबा भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं, और उनकी कृपा से असंभव को संभव किया जा सकता है।

सालभर जलता दीपक और ताजे फूल हसनंबा मंदिर का सबसे अनोखा पहलू यह है कि दिवाली के दौरान इसके कपाट केवल 7 दिनों के लिए ही खोले जाते हैं। जब मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है, तब वहां शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है और मंदिर को सुंदर फूलों से सजाया जाता है। इसके साथ ही प्रसाद के रूप में चावल से बने व्यंजन अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक साल बाद जब अगले दिवाली पर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तब भी दीपक जलता रहता है और फूल ताजे बने रहते हैं। यह चमत्कार भक्तों के लिए गहरा आस्था का विषय बना हुआ है, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस घटना को आज तक कोई प्रमाणित नहीं कर पाया है।

दिवाली पर 7 दिनों का विशेष उत्सव दिवाली के अवसर पर हसनंबा मंदिर में मां जगदंबा की पूजा-पाठ पूरे 7 दिनों तक होती है। मंदिर के कपाट खुलने के बाद हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां पहुंचते हैं। इस दौरान मंदिर में भक्तों के लिए विशेष अनुष्ठान, भोग और भव्य आयोजन किए जाते हैं। सातवें दिन, विशेष पूजा के बाद मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं, जो कि अगले साल दिवाली पर ही खोले जाते हैं।

पौराणिक कथा हसनंबा मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा अंधकासुर नामक राक्षस से संबंधित है। कथा के अनुसार, अंधकासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अदृश्य होने का वरदान प्राप्त किया। वरदान पाने के बाद उसने ऋषियों, मुनियों और साधारण जनों को परेशान करना शुरू कर दिया। राक्षस का अंत करना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उसके खून की प्रत्येक बूंद से नए राक्षस उत्पन्न होते थे। तब भगवान शिव ने तपयोग के माध्यम से योगेश्वरी देवी का आह्वान किया, जिनका निर्माण अंधकासुर का अंत करने के लिए किया गया था। योगेश्वरी देवी ने अपनी शक्ति से अंधकासुर का वध किया, और इस घटना के बाद से मां को मां हसनंबा के रूप में पूजने की परंपरा आरंभ हुई।

दिवाली से पहले घर ले आएं ये पौधे, बरसेगी मातारानी की कृपा

कब है धनतेरस, छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज? यहाँ जानिए शुभ-मुहूर्त

झाड़ू से जुड़े इन वास्तु नियमों का रखें ध्यान, घर में बनी रहेगी बरकत

Related News