तमिलनाडु में शान से निकला 'आतंकी' का जनाजा, हज़ारों मुस्लिम हुए शामिल, लेकिन विरोध करने वाले गिरफ्तार

चेन्नई: तमिलनाडु के कोयंबटूर में 1998 में हुए भीषण सीरियल बम धमाकों ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इन धमाकों में 58 निर्दोष लोगों की मौत हुई थी, जबकि 231 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस हमले का मास्टरमाइंड और दोषी एस-ए बाशा हाल ही में जेल में अपनी मौत मर गया। लेकिन इसके बाद जो घटनाक्रम सामने आया, उसने सवाल खड़े कर दिए हैं कि तमिलनाडु की DMK सरकार आतंकियों के समर्थन में है या देश की जनता के साथ?  

 

बाशा के जनाजे को तमिलनाडु सरकार ने सिर्फ अनुमति ही नहीं दी, बल्कि सुरक्षा के लिए 2000 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनात किया। ऐसा लग रहा था जैसे कोई सम्मानित व्यक्ति या राष्ट्र का नायक विदा हो रहा हो। हजारों कट्टरपंथियों, नेताओं और अभिनेताओं ने जनाजे में भाग लिया और उसे हीरो जैसी विदाई दी। यह नजारा देख देश के राष्ट्रवादी संगठनों ने सवाल उठाए और विरोध किया, लेकिन DMK सरकार ने उनकी आवाज दबाने के लिए पुलिस का सहारा लिया।  

भाजपा, हिंदू मुन्नानी और विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे संगठनों ने आतंकवादियों के महिमामंडन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई कि जिस व्यक्ति ने सैकड़ों मासूमों की जान ली, उसे ऐसे विदा किया जा रहा है जैसे वह कोई संत पुरुष हो। लेकिन DMK सरकार को ये विरोध रास नहीं आया। उन्होंने आतंक के खिलाफ उठी आवाजों को दबाने के लिए इन संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करवा दिया।  

 

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने डीएमके सरकार के इस कदम की निंदा की और इसे वोट बैंक की राजनीति बताया। उन्होंने कहा कि सरकार एक तरफ आतंकियों को समर्थन दे रही है और दूसरी तरफ राष्ट्रवादियों को जेल में ठूँस रही है। उन्होंने कहा कि, यह कदम DMK सरकार की मंशा को साफ दिखाता है कि वह कट्टरपंथियों का पक्ष ले रही है और आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने वालों को कुचलने का प्रयास कर रही है।  

सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। अन्नामलाई ने ट्वीट करके बताया कि DMK सरकार के इशारे पर उन्हें और कई अन्य राष्ट्रवादी नेताओं को हिरासत में लिया गया। ये लोग ‘ब्लैक डे रैली’ निकाल रहे थे, ताकि सरकार को आतंकियों के समर्थन पर जवाबदेह ठहराया जा सके। लेकिन सरकार ने लोकतांत्रिक विरोध को भी बर्दाश्त नहीं किया और पुलिस के जरिए इन आवाजों को दबा दिया।  

यह घटना उस समय और भी चिंताजनक हो जाती है जब देखा जाता है कि तमिलनाडु की डीएमके सरकार के नेता बार-बार हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति पर हमले करते रहे हैं। उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन खुद को ‘प्राउड क्रिश्चियन’ कहते हैं और सनातन धर्म की तुलना डेंगू-मलेरिया से करते हुए इसे खत्म करने की बात करते हैं। ऐसे में जब एक आतंकी को शानदार विदाई दी जाती है और आतंकवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों को जेल में डाल दिया जाता है, तो सवाल उठता है कि आखिर DMK सरकार की नीयत क्या है?  

 

क्या DMK सरकार यह संदेश दे रही है कि जो आतंकवाद का समर्थन करेगा, उसे सुरक्षा और सम्मान मिलेगा? लेकिन जो आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होगा, उसे दमन का सामना करना पड़ेगा? इस कार्रवाई से तो यही सन्देश जा रहा है कि DMK सरकार आतंकवाद के समर्थकों को तो सुरक्षा प्रदान कर रही है, वहीं आतंकवाद के विरोधियों को गिरफ्तार कर रही है।     यह घटना सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए अगर आतंकी मानसिकता को बढ़ावा दिया गया, तो इसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी।  

आतंकवाद के खिलाफ देशभर में एकजुटता की जरूरत है। यह बेहद चिंताजनक है कि डीएमके जैसी सरकारें इस तरह के कदम उठाकर कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रही हैं और राष्ट्रवादियों को अपराधी साबित करने में लगी हैं। क्या ऐसे फैसले देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरे में नहीं डाल रहे हैं? तमिलनाडु की यह घटना देश के हर नागरिक के लिए एक बड़ा सवाल छोड़ जाती है—आखिर हम किस ओर जा रहे हैं? क्या आतंकियों का महिमामंडन और राष्ट्रवादियों का दमन नई राजनीति का हिस्सा बन चुका है? अगर हाँ, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरे की घंटी है।  

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