भुवनेश्वर: कभी न्याय की कुर्सी पर बैठकर निष्पक्षता का प्रतीक रहे डॉ. एस. मुरलीधर अब वकालत के पेशे में हैं, लेकिन उनकी हालिया भूमिका ने देशभर में नई बहस छेड़ दी है। ओडिशा हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डॉ. मुरलीधर अब मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट के दोषी आतंकियों का बचाव करते हुए उन्हें ‘मासूम’ बता रहे हैं। ये वही आतंकी हैं, जिन पर 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 180 से अधिक लोगों की जान लेने और सैकड़ों को घायल करने का आरोप साबित हो चुका है। 11 जुलाई, 2006 की वह शाम आज भी उन परिवारों के लिए काले दिन के रूप में याद की जाती है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को इस हमले में खो दिया। मुंबई की भीड़भाड़ भरी लोकल ट्रेनों को निशाना बनाते हुए आतंकियों ने प्रेशर कुकर और IED से लैस बमों का इस्तेमाल किया। 7 अलग-अलग स्थानों पर हुए धमाकों में 187 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हुए। इस हमले के बाद जांच एजेंसियों ने 13 संदिग्धों को पकड़ा, जिनमें से 12 को अदालत ने दोषी करार दिया। 5 को फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि 7 को उम्रकैद मिली। पूर्व चीफ जस्टिस और वर्तमान वकील डॉ. एस. मुरलीधर ने मुंबई लोकल ब्लास्ट के दो दोषियों, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख और ज़मीर अहमद लतीफुर रहमान शेख, के बचाव में बॉम्बे हाई कोर्ट में दलीलें पेश की हैं। उनका कहना है कि जांच पक्षपाती थी और दोषियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं। मुरलीधर का दावा है कि गवाहों को मजबूर किया गया, सबूत गढ़े गए, और आरोपियों के परिवारों को प्रताड़ित किया गया। यह बात हैरान करती है कि मुरलीधर जैसे अनुभवी व्यक्ति, जिन्होंने खुद न्यायपालिका का हिस्सा रहते हुए साक्ष्यों के महत्व को समझा होगा, अब उन दोषियों को मासूम बता रहे हैं, जिन्हें ठोस सबूतों और गवाहों के आधार पर सजा दी गई है। क्या कोर्ट ने बिना पर्याप्त साक्ष्यों के किसी को दोषी ठहराया होगा और सजा सुना दी होगी? फिर भी, मुरलीधर का यह कहना कि दोषी मासूम हैं, उन परिवारों के दर्द को और बढ़ा देता है, जिन्होंने इस हमले में अपनों को खो दिया। जिन लोगों ने आतंक के इस भयानक खेल में अपनी जान गंवाई, उनके परिवार आज भी न्याय की उम्मीद में हैं। पर विडंबना यह है कि जिन पर न्याय का विश्वास रखने की जिम्मेदारी थी, वे अब आतंकियों को निर्दोष साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। मुरलीधर का कहना है कि पुलिस और जांच एजेंसियां अक्सर दबाव में काम करती हैं और गलत फैसले लेती हैं। लेकिन क्या इस तर्क से यह मान लिया जाए कि सभी दोषी निर्दोष हैं? तो फिर 180 मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन है ? क्या वे खुद बम लगाकर मर गए ? मुंबई लोकल ब्लास्ट के दोषियों की सजा को चुनौती देना उन परिवारों के लिए गहरा आघात है, जिन्होंने न्यायपालिका पर भरोसा किया। इन दोषियों को बचाने का प्रयास न्याय के प्रति आम जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है। मुरलीधर के दावों से उन पीड़ित परिवारों को ऐसा महसूस हो सकता है, जैसे उनकी पीड़ा को नकारा जा रहा है। डॉ. मुरलीधर का विवादों से पुराना नाता है। 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में उन्होंने आरोपी गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड रद्द कर दी थी, जिसके बाद उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठे थे। एक जज के रूप में उनके कार्यकाल और अब वकील के रूप में उनकी भूमिका में विरोधाभास स्पष्ट है। क्या यह सिर्फ वकालत का पेशा है या फिर उनके फैसले की गहराई में कोई और सोच काम कर रही है? यह सवाल आम जनता के मन में गूंजता रहेगा। मुंबई लोकल ब्लास्ट भारत के इतिहास के सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक था। इस मामले में दोषियों को अदालत ने सजा सुनाई है, जिसे साबित करने में जांच एजेंसियों ने वर्षों तक मेहनत की। आज इन दोषियों को मासूम बताना न केवल पीड़ित परिवारों के जख्मों को कुरेदता है, बल्कि न्यायपालिका पर सवाल भी खड़े करता है। पूरे टूर में खिलाड़ियों के साथ नहीं रह पाएंगे परिवार-पत्नी..! ऑस्ट्रेलिया की हार के बाद BCCI का फैसला महाकुंभ में साध्वी बनकर रह रहीं Apple फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी, भारतीय बुद्धिजीवियों को दिख रहा 'पाखंड' मथुरा: शाही ईदगाह के असली धार्मिक चरित्र की पहचान न हो..! सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मुस्लिम पक्ष, सुनवाई कल