सौरभ शुक्ला आज किसी भी परिचय के मोहताज नही हैं। जॉली एलएलबी' के मजेदार और सेंसिटिव जज ने उन्हें आम लोगों के बीच बेहद पापुलर कर दिया। 'पीके' के तपस्वी महाराज ने उन्हें एक नई पहचान दी। बात दें, सौरभ शुक्ला की कॉमिडी में भी गंभीरता होती है। उनकी इस कॉमेडी को विकीपीडिया में ब्लैक कॉमिडी का नाम दे दिया गया है, जिससे वे खुद अनजान हैं। पिछले दिनों उन्हें यश भारती सम्मान से नवाजा गया। उनकी नजरों में जो अवॉर्ड सरकार की तरफ से दिया जाता है, उसका अलग महत्व और गरिमा होती है। सौरभ कहते हैं कि मैंने 23 साल के फिल्मी करियर में कभी अवॉर्ड पाने के लिए ऐक्टिंग या राइटिंग नहीं की। अवॉर्ड की चाहत जो रखता है, वह कभी काम नहीं कर सकता है। सौरभ शुक्ला का मानना है कि सिनेमा काफी बदल चूका है। 1960-70 फिर 1980 से 1990 के दशक की मध्य की फिल्मों में कई बड़े बदलाव आए। शुक्ला का कहना है कि 1993 में मैं मुंबई गया था। उस वक्त किसी प्रड्यूसर को कहानी सुनाता तो वह पूछता कि यह किस फिल्म पर बेस्ड है। अगर कहते कि यह ओरिजनल है तो सामने वाला कहता तो फिर मैं क्यों बनाऊं। वह चले न चले, क्या गारंटी। उस वक्त क्लियर हो गया था कि खुद की सोची ओरिजनल कहानी बनाना मुश्किल काम है। मैं और मेरे कई दोस्त उस वक्त एक काम किया करते थे। जब हम कहानी सुनाते थे तो कोई एक काल्पनिक फिल्म अपने दिमाग में बना लेते और कहते कि यह पोलैंड की मूवी है। वहां से उठाई है। तब सामने वाला कहानी सुनने के लिए राजी हो जाता था। अब प्रड्यूसर्स कहते हैं कि भाई कुछ नया हो तो बताओ। मामू टाइम-देखिए, मामू सलमान-अहिल की यह खास तस्वीर