उज्जैन: भारत में लगभग 200 से अधिक नदियाँ हैं, जिनमें से हर एक का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। सनातन धर्म में नदियों को देवी का रूप मानकर पूजा जाती है तथा माना जाता है कि इन नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। नदियों के साथ जुड़ी मान्यताएँ और परंपराएँ भारतीय संस्कृति में गहरे रूप से समाहित हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी नदी है, जिसकी लोग सिर्फ स्नान करने के लिए नहीं, बल्कि उसकी परिक्रमा भी करते हैं? यह विशेष नदी और कोई नहीं, बल्कि नर्मदा है। नर्मदा नदी को दुनिया की एकमात्र नदी माना जाता है, जिसकी लोग परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष धार्मिक यात्रा होती है, जिसमें वे "नर्मदे हर" का जाप करते हुए नदी के किनारे-किनारे यात्रा करते हैं। नर्मदा नदी का महत्व नर्मदा नदी को जीवनदायिनी माना जाता है। यह नदी न केवल अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलती है तथा यह नदी गुजरात के खंभात की खाड़ी में जाकर मिलती है। नर्मदा का पानी शुद्ध और पवित्र माना जाता है, और इसके तट पर बसे मंदिरों और घाटों को तीर्थ स्थल के रूप में पूजा जाता है। नर्मदा नदी के तट पर कई धार्मिक स्थल स्थित हैं, जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, एवं अमरकंटक, जहां लाखों श्रद्धालु हर साल नर्मदा स्नान करते हैं। नर्मदा नदी का पानी न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नदी क्षेत्र के पर्यावरण और जीवन का आधार भी है। इस नदी के तट पर बसे गाँवों और शहरों का जीवन इस नदी के पानी पर निर्भर करता है। नर्मदा परिक्रमा का महत्व नर्मदा परिक्रमा न सिर्फ एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह मनुष्य के आत्म-शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का साधन भी मानी जाती है। नर्मदा परिक्रमा के चलते श्रद्धालु नदी के चारों ओर 1,320 किलोमीटर लंबी यात्रा करते हैं। यह यात्रा मध्य प्रदेश के अमरकंटक से आरम्भ होकर गुजरात के खंभात की खाड़ी में समाप्त होती है। इस यात्रा में श्रद्धालु नर्मदा नदी के सभी प्रमुख तटों, घाटों, मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर रुकते हैं तथा हर स्थान पर पूजा और आराधना करते हैं। नर्मदा परिक्रमा का आयोजन विशेष रूप से देवउठनी एकादशी के पश्चात् की पूर्णिमा से शुरू होता है। यह परिक्रमा 1,320 किलोमीटर तक चलती है, जिसमें श्रद्धालु नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरुआत करते हैं। इस यात्रा के चलते श्रद्धालु नर्मदा के प्रमुख घाटों जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, और अन्य धार्मिक स्थलों पर भी रुकते हैं। यात्रा के आखिरी चरण में वे फिर उसी स्थल पर लौटते हैं, जहां से यात्रा की शुरुआत की थी। इस परिक्रमा में हिस्सा लेने वाले श्रद्धालु पूरे रास्ते में पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा शारीरिक और मानसिक तपस्विता का प्रतीक मानी जाती है तथा इसके चलते श्रद्धालु न केवल शारीरिक रूप से उन्नति करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर होते हैं। नर्मदा परिक्रमा से पापों का नाश और मोक्ष प्राप्ति नर्मदा परिक्रमा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, नर्मदा परिक्रमा करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु अपने साथ एक आस्था और श्रद्धा लेकर यात्रा करते हैं। इस के चलते वे पूरी यात्रा के दौरान नर्मदा नदी के पवित्र जल से स्नान करते हैं, पूजा अर्चना करते हैं और भजन कीर्तन में लीन रहते हैं। यात्रा के चलते, वे न सिर्फ शारीरिक रूप से सशक्त होते हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धता की ओर भी अग्रसर होते हैं। यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि एक जीवन के उद्देश्य को समझने और उसे प्राप्त करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। नर्मदा नदी का उल्टा बहना नर्मदा नदी उन कुछ नदियों में से एक है, जो उल्टी दिशा में बहती है। यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है, जबकि अधिकांश नदियाँ पश्चिम से पूर्व की तरफ बहती हैं। इस विशेषता की वजह से भी नर्मदा नदी को विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है। माना जाता है कि नर्मदा का पानी बहुत ही शुद्ध है तथा इसकी धाराओं में विशेष शक्ति और ऊर्जा का संचार होता है। समंदर में चीन-पाक को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी, भारतीय नौसेना को मिलेंगे 26 राफेल गुजरात की डिटॉक्स इंडिया कंपनी में भीषण विस्फोट, 4 मजदूरों की दुखद मौत ताजमहल को बम से उड़ाने की धमकी, जांच में जुटी पुलिस