अपने पिता की उंगली को छोड़कर खुद चलने के काबिल हुए इस 9 वर्ष के बच्चे को अनुमान भी नहीं था कि पिता की वो उंगली, जिसे पकड़कर उसे विश्व के अभी बहुत सारे पहलू देखने और समझने अब भी बाकी थे, लेकिन ऐसा हो न सका, कोरोना काल सबसे खौफनाक मंज़र और कुछ नहीं बल्कि एकांत की घुटन भरी मौत है. जंहा एक आखिरी स्पर्श, एक आखिरी शब्द, एक आखिरी विदाई... कुछ भी नहीं करने देता कोरोना. मौत के इस नए नाम ने कैसे अधूरे कर दिए हैं. जंहा इस बात का पता चला है कि मौत कई उलहाने के साथ आती है. लेकिन जाते हुए लोगों को प्रायः अपनों के हाथ थाम कर रखते हैं. परिवार, परिजनों का पूरा मनोविज्ञान ही यही है कि वो कष्ट में आसपास रहता है, दर्द बांटें, देखभाल करें. कोविड ने लोगों के इस हज़ारों साल पुराने सिस्टम को हिला कर रख दिया है. यह एक ऐसी परिस्थिती है जिसका समाना करना हर किसी के लिए बहुत है मुश्किल है, जिसमे से एक से है अपनों की आँखे अपने सामने बंद होते हुए देखना. हम बता दें कि युद्ध या बड़ी दुर्घटनाओं को छोड़ दें तो शवों को एक साथ ले जाने का चलन नहीं रहा है. लेकिन मरे हुए लोग अब अछूत गठरियां बन चुके हैं. जिनके नाम और चेहरे अब इस दुनिया में कभी भी देखने को नहीं मिलेंगे. और ये सब एक आम से समझे जाने वाले वायरस के कारण आज कई लोगों को इस दुनिया को अलविदा बोलना पड़ा और कई ऐसे लोगों ने भी अपना सब कुछ खोया है जिनके पास जीने की एक मात्र वजह उनका परिवार ही था. कई मासूम बच्चो ने अपने माता पिता तो किसी न अपने बच्चों को खोया है. Soure: aajtak.in भोपाल के महापौर पद ओबीसी प्रत्याशी के लिए हुए आरक्षित राजस्थान पंचायत समिति स्थानीय चुनाव में भाजपा ने किया सत्तारूढ़ कांग्रेस का नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी ने दी सोनिया गांधी को जन्मदिन की बधाई