हम सभी इस बात से वाकिफ है कि महाभारत के संबंध में बहुत सी कथाएं मिलती हैं और उन्हीं में से एक कथा कुछ ऐसी भी है जो आप सभी ने शायद ही सुनी होगी. यह कथा है कर्ण और सर्प के बारे में. जी हाँ, लोककथाओं की माने तो युद्ध के दौरान कर्ण के तूणीर में कहीं से एक बहुत ही जहरीला सर्प आकर बैठ गया. तूणीर अर्थात जहां तीर रखते हैं, जिसे तरकश भी कहते हैं यह पीछे पीठ पर बंधी होती है. कहा जाता है कर्ण ने जब एक तीर निकालना चाहा तो तीर की जगह यह सर्प उनके हाथ में आ गया और कर्ण ने पूछा, तुम कौन हो और यहां कहां से आ गए. तब सर्प ने कहा, हे दानवीर कर्ण, मैं अर्जुन से बदला लेने के लिए आपके तूणीर में जा बैठा था. कर्ण ने पूछा, क्यों? इस सवाल पर सर्प ने कहा, राजन! एक बार अर्जुन ने खांडव वन में आग लगा दी थी. उस आग में मेरी माता जलकर मर गई थी, तभी से मेरे मन में अर्जुन के प्रति विद्रोह है. मैं उससे प्रतिशोध लेने का अवसर देख रहा था. वह अवसर मुझे आज मिला है. उस समय कुछ रुककर सर्प फिर बोला, आप मुझे तीर के स्थान पर चला दें. मैं सीधा अर्जुन को जाकर डस लूंगा और कुछ ही क्षणों में उसके प्राण-पखेरू उड़ जाएंगे. सर्प की बात सुनकर कर्ण सहजता से बोले, हे सर्पराज, आप गलत कार्य कर रहे हैं. जब अर्जुन ने खांडव वन में आग लगाई होगी तो उनका उद्देश्य तुम्हारी माता को जलाना कभी न रहा होगा. ऐसे में मैं अर्जुन को दोषी नहीं मानता. दूसरा अनैतिक तरह से विजय प्राप्त करना मेरे संस्कारों में नहीं है इसलिए आप वापस लौट जाएं और अर्जुन को कोई नुकसान न पहुंचाएं. यह सुनकर सर्प वहां से उड़ गया. इस तरह भगवान ने एक सीख दी और इसी तरह पूरा माहभर अनेकों सीख से भरा हुआ है. अगर ऐसा होता है तो 5 नहीं 14 पतियो की पत्नी होती द्रोपदी मकर संक्रांति के बाद से शुरू हो जाएंगे आपके अच्छे दिन, कर लें खखोल्क मंत्र का जाप भोलेनाथ के अनुसार इस पाप के कारण इंसान रह जाता है संतानहीन