नई दिल्ली : सार्वजनिक रूप से उपलब्ध निजी सूचना के संभावित दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने प्रौद्योगिकी के इस दौर में निजता की सुरक्षा को हारी हुई बाजी बताया है. बता दें कि प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे पर मंथन कर रही है कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत बुनियादी अधिकार करार दिया जा सकता है? उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता में नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस जटिल मुद्दे पर विचार विमर्श कर रही है. पीठ ने कहा कि हम निजता की हारी हुई बाजी की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम नहीं जानते कि किस उद्देश्य से सूचना का इस्तेमाल किया जाएगा. यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय है. बता दें कि इस विषय पर एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किए जाने के पक्ष और विरोध में अपनी दलीलें पेश कीं है. इस मामले में 27 अगस्त या इससे पूर्व निर्णय आ जाएगा, क्योंकि इसी दिन न्यायाधीश खेहर रिटायर हो रहे हैं. गौरतलब है कि गुजरात सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि निजता के कुछ पहलुओं को विभिन्न बुनियादी अधिकारों में खोजा जा सकता है, लेकिन प्राधिकारों को बुनियादी निजी सूचना प्रदान करना इस तकनीकी युग में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए भी जरूरी है. नियमावली के तहत विभिन्न निजी सूचनाएं मांग कर तकनीक के साथ आगे बढ़ रहे हैं.द्विवेदी ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट जनहित याचिका दायर करने की अनुमति देने के लिए नाम, पता, टेलीफोन नंबर, पेशा और राष्ट्रीय अनूठा पहचान कार्ड जैसी निजी सूचना मांग रहा है. यह भी देखें SC से शराब कंपनियों को नहीं मिली मोहलत, अब राज्य सरकार नष्ट करेगी शराब पटाखे निर्माण पर SC का फैसला, प्रदुषण पर होगा नियंत्रण