सदियों से गुरुद्वारों पर लहरा रही 'भगवा' पताका, अब नहीं लहराएगी ! SGPC ने लिया रंग बदलने का फैसला

अमृतसर: गुरुद्वारों पर सदियों से फहराया जा रहे ध्वज का रंग अब भगवा या केसरिया नहीं होगा। सिख समुदाय की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने इस संबंध में बाकायदा आदेश जारी किए हैं कि अब निशान साहिब का रंग बसंती होगा। यह फैसला SGPC ने श्री अकाल तख्त साहिब में हुई पांच सिंह साहिबान की मीटिंग में लिया है। 

SGPC ने कहा है कि केसरी निशान साहिब को लेकर संगत के बीच असमंजस था। कुछ मामले श्री अकाल तख्त साहिब के ध्यान में आए थे, जिन पर चर्चा हुई। पांच सिंह साहिबानों की बैठक में इस मुद्दे पर बातचीत हुई कि निशान साहिब का रंग बेशक भगवा है, मगर गलती से यह हिंदू धर्म के प्रतीक भगवा रंग से मेल खाता है। इसके चलते कई बार संगत के लोग या अजनबी लोग इसमें फर्क नहीं कर पाते हैं और दोनों को एक ही समझ लेते हैं। इसी समस्या को दूर करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। SGPC ने कहा कि सिख धर्म हिंदू धर्म से अलग है, लेकिन फिर भी कुछ लोग यह प्रचार करते हैं कि हिंदू और सिख एक ही धर्म हैं। इस प्रकार के भ्रम से बचने के लिए यह निर्णय लिया गया है।

वैसे ये अलग बात है कि, सिख गुरुओं ने तो अपने आप को हिन्दुओं से अलग नहीं समझा था। मुग़लकाल और ब्रिटिश काल में भी ये एक ही रहे। लेकिन बंटवारे के बाद राजनेताओं की सियासी चाह और पाकिस्तानी साजिश ने इनमे फूट डाल दी। खालिस्तान मुद्दे ने इसमें आग में घी का काम किया, जो इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पैदा हुआ था। वरना किस सिख गुरु ने अलग देश माँगा था ? गुरु नानकदेव ने राम कि वंदना की है, गुरु गोविन्द सिंह ने दुर्गा की और गुरु गोबिन्द सिंह ने चंडी चरित्र लिखा है, दुर्गा की उपासना की है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि, 'सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू, सकल भंड भाजे।'

गुरु गोबिंद सिंह, अपनी सेना को संबोधित करते हुए कहते थे कि, ''देहि शिवा वर मोहे, शुभ करमन ते कबहूं न टरूं, न डरूं अरि सौं जब जाइ लरूं, निश्चय कर अपनी जीत करूं।'' यहाँ गुरु गोबिंद सिंह किस शिवा की बात कर रहे हैं, दरअसल भारत में शिव की अर्धांगिनी माँ दुर्गा को ही शिवा कहा जाता है। यही नहीं, भारत में जय माता जी का नहीं, बल्कि 'जय माता दी' का नारा प्रसिद्ध है, क्योंकि सिख गुरुओं से लेकर समुदाय ने भी माता को खूब पूजा है और आज भी पूजते हैं। लेकिन SGPC का कहना है, तो आगे जाकर शायद ये बंद भी हो सकता है, क्योंकि अलग करने की कोशिशें तो शुरू हो ही चुकी हैं। बुल्ले शाह जी कहते हैं कि, ना कहूँ जब की, ना कहूँ तब की, ना कहूँ जब की, ना कहूँ तब की, बात कहूँ मैं अब की, अगर ना होते गुरु गोविन्द सिंह, सुन्नत होती सभ की। यानी अगर गुरु गोबिंद सिंह ना होते तो सभी लोग मुसलमान होते। ये बताता है कि, गुरु गोबिंद सिंह ने किस कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। 

वैसे एक दौर वो भी था, जब धर्म रक्षा के लिए हिन्दू परिवार अपने घर के एक बेटे को सिख बनाया करते थे और उन्हें गुरुओं की सेवा में भेजा करते थे। बन्दा सिंह बहादुर पहले महंत माधोदास बैरागी थे, भाई मणि राम राजपूत परिवार से थे, भाई मती दास छिब्बर वंश के (सारस्वत) मोहयाल ब्राह्मण परिवार से थे, भाई सतीदास उनके छोटे भाई थे। ऐसे तमाम लोग गुरुओं के हाथों आशीर्वाद लेकर धर्म और देश रक्षा के लिए बलिदान हुए। गुरु ने खुद कश्मीरी पंडितों की विनती मानकर उन्हें आश्रय दिया और औरंगज़ेब के खिलाफ आवाज़ उठाई। ये तमाम चीज़ें बताती हैं कि, सिख और हिन्दू कभी अलग नहीं रहे। पर अब उन्हें अलग करने की कोशिश जारी है, क्योंकि दुश्मन ने तो लकड़ी के गट्ठर को ना तोड़ पाने वाली कहानी पढ़ी है, शायद भारतवासी भूल गए।  अफ़सोस, भारत को आज भी शत्रुबोध की समझ नहीं है, और वो आपस में ही टूटकर बिखरने के लिए तैयार है। 

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