हर शुभ कार्य, चाहे वह पूजा-पाठ, सांस्कृतिक उत्सव अथवा कोई भी फेस्टिवल क्यों न हो, सभी का आरम्भ दीप प्रज्वलित करने से ही होती है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक, अग्नि पृथ्वी पर सूर्य का परिवर्तित हुआ रूप है। मान्यता है कि अग्निदेव को साक्षी मानकर उसकी उपस्थिति में किए गए कार्य जरूर सफल होते हैं। रौशनी ज्ञान का प्रतीक भी है, 'ईश्वर' प्रकाश तथा ज्ञान -रूप में ही हर स्थान व्याप्त हैं। ज्ञान मिलने से अज्ञान रुपी मनोविकार दूर होते हैं लाइफ के कष्ट मिटते हैं। इसलिए रौशनी की पूजा को ईश्वर की पूजा भी माना गया है। अग्नि पुराण के मुताबिक, जो व्यक्ति मंदिर अथवा ब्राह्मण के घर में एक साल तक दीप दान करता है वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। इसी तरह चार्तुमास, पूरे अधिकमास अथवा अधिकमास की पूर्णिमा के दिन मंदिर अथवा पवित्र नदियों के किनारे दीपदान करने वाला व्यक्ति विष्णु लोक को प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त ऐसा भी माना जाता है कि जब तक दीपक जलता है, तब तक ईश्वर स्वयं उस जगह पर मौजूद रहते है इसलिए वहां पर मांगी गई प्रार्थनाएं जल्द पूरी होती हैं। वही दीपक से हमें जीवन के उर्ध्वगामी होने, ऊंचा उठने तथा अंधकार को मिटा डालने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त दीप ज्योति से सभी पाप समाप्त होकर जीवन में सुख-समृद्धि,आयु, आरोग्य और सुखमय जीवन में बढ़ोतरी होती। गाय के घी का दीपक जलाने से आसपास का वातावरण रोगाणु मुक्त होकर शुद्ध हो जाता है। पूजा अर्चना करते समय दिया जलाने के पीछे भी यही लक्ष्य होता है कि प्रभु हमारे मन से अज्ञान रुपी अंधकार को दूर करके ज्ञान रुपी रौशनी प्रदान करें। इसी के साथ प्रकाश एक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। अधिकमास में इन शुभ कार्यो को करने पर नहीं है कोई मनाही जानिए पुरुषोत्तम मास में क्यों नहीं की जाती नवधा भक्ति 8 में से 4 विवाह में शामिल है ब्रह्म-विवाह