सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता का माना गया है। उन्ही में से भगवान शिव के लिए सोमवार के दिन को माना गया है, इस दिन अगर भगवान शिव कि पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है, तो भगवान शिव आपसे जल्द ही प्रसन्न होते हैं। अब अगर भगवान शिव की ही बात हो रही है, तो चलिए जानते है उनकी कुछ बातें, दरअसल भगवान शिव का नाम लेते ही उनकी एक छवी मन मे बन जाती है और इस छवि के अनुसार भगवान भोले हाथ में त्रिशूल, डमरू, गले में सांप और शेर की खाल के साथ नजर आते हैं। अब सोचने वाली बात यह है, कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा? जो भगवान शिव हमेशा इन चीजों के साथ ही नजर आते हैं। अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं, तो चलिए आज हम आपसे भगवान शिव द्वारा लपेटे गये शेर की खाल के बारे में चर्चा करते हैं, जहां पर हम जानेंगे कि आखिर भोले बाबा के पास शेर की खाल कहां से आयी? भगवान शिव एक बार ब्रह्मांड का गमन करते-करते एक जंगल में पहुंचे, जो कि कई ऋषि-मुनियों का स्थान था। यहां वे अपने परिवार समेत रहते थे। भगवान शिव इस जंगल से निर्वस्त्र गुजर रहे थे, वे इस बात से अनजान थे कि उन्होंने वस्त्र धारण नहीं कर रखे। शिवजी का सुडौल शरीर देख ऋषि-मुनियों की पत्नियां उनकी ओर आकर्षित होने लगी। वह धीरे-धीरे सभी कार्यों को छोड़ केवल शिवजी पर ध्यान देने लगीं। तत्पश्चात जब ऋषियों को यह ज्ञात हुआ कि शिवजी के कारण उनकी पत्नियां मार्ग से भटक रही हैं तो वे बेहद क्रोधित हुए। सभी ऋषियों ने शिवजी को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने शिवजी के मार्ग में एक बड़ा गड्ढा बना दिया, मार्ग से गुजरते हुए शिवजी उसमें गिर गए। जैसे ही ऋषियों ने देखा कि शिवजी उनकी चाल में फंस गए हैं, तो उन्होंने उस गड्ढे में एक शेर को भी गिरा दिया, ताकि वह शिवजी को मारकर खा जाए। लेकिन आगे जो हुआ उसे देख सभी चकित रह गए। शिवजी ने स्वयं उस शेर को मार डाला और उसकी खाल को पहन गड्ढे से बाहर आ गए। तब सभी ऋषि-मुनियों को यह आभास हुआ कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं है। इस पौराणिक कहानी को आधार मानते हुए यह बताया जाता है कि क्यों शिवजी शेर की खाल पहनते हैं या फिर उस खाल के ऊपर विराजमान होते हैं। भाभी-ननद के झगड़े की शुरुआत हुई थी शिव जी के परिवार से शुरू कुंडली में अगर कालसर्प से हैं परेशान तो यहाँ आकर करें दर्शन तो इसलिए भगवान जगन्नाथ की मूर्ति की हथेली नहीं है प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर है काली का टिब्बा मंदिर