मनुष्य को अशुद्ध कर देते हैं ये 3 काम, तुरंत करना चाहिए ये काम

आचार्य चाणक्य का नीति शास्त्र जीवन के हर पहलू को छूता है और इसमें दैनिक जीवन के कई आवश्यक नियम और सुझाव दिए गए हैं। इसमें उन्होंने कुछ ऐसे कार्यों का उल्लेख किया है जिनके बाद स्नान करना अनिवार्य बताया गया है। उनके अनुसार, इन कार्यों को करने के बाद स्नान न करने से शरीर और मन अशुद्ध हो जाते हैं, जिससे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

1. तेल मालिश के बाद स्नान: आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति अपने शरीर पर तेल से मालिश कराता है, तो उसे तुरंत स्नान करना चाहिए। तेल मालिश करने से त्वचा पर तेल की परत बन जाती है, जिससे शरीर चिपचिपा हो जाता है। यह चिपचिपाहट केवल स्नान से ही दूर हो सकती है। इसके अलावा, तेल मालिश के बाद त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं और धूल या अन्य अशुद्धियाँ उसमें चिपक सकती हैं। इसलिए, स्नान करना आवश्यक है ताकि शरीर की स्वच्छता और ताजगी बनी रहे।

2. बाल कटवाने के बाद स्नान: जब कोई व्यक्ति नाई के पास जाकर बाल कटवाता है, तो छोटे-छोटे बाल शरीर पर चिपक जाते हैं। यह बाल न केवल असुविधाजनक होते हैं, बल्कि स्वच्छता के दृष्टिकोण से भी हानिकारक होते हैं। चाणक्य कहते हैं कि बाल कटवाने के तुरंत बाद स्नान करना चाहिए ताकि शरीर से सभी छोटे बाल हट जाएं और व्यक्ति शुद्ध महसूस कर सके। अगर बिना स्नान किए दिन भर छोटे बालों के साथ रहा जाए, तो यह शरीर में खुजली और असुविधा का कारण बन सकता है।

3. श्मशान से लौटने के बाद स्नान: चाणक्य का एक महत्वपूर्ण नियम यह भी है कि अगर कोई व्यक्ति श्मशान से लौटता है और चिता के धुएं का स्पर्श होता है, तो उसे घर आकर तुरंत स्नान करना चाहिए। भारतीय परंपरा में, श्मशान को एक ऐसी जगह माना जाता है जहां नकारात्मक ऊर्जाएं अधिक होती हैं। चिता के धुएं में भी ऐसी ऊर्जाओं का प्रभाव हो सकता है। इसलिए, इस धुएं का स्पर्श होने के बाद स्नान करना जरूरी है ताकि व्यक्ति की ऊर्जा शुद्ध और सकारात्मक बनी रहे।

4. अन्य विशेष अवसरों पर स्नान: चाणक्य के अनुसार, कुछ विशेष अवसरों जैसे कि मासिक धर्म, जन्म या मृत्यु के समय, या किसी धार्मिक अनुष्ठान के बाद भी स्नान आवश्यक माना गया है। उनका मानना था कि इन अवसरों पर शुद्धता और स्वच्छता को बनाए रखना बेहद जरूरी है ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सही बना रहे।

5. शुद्धता और मानसिक शांति का महत्व: चाणक्य का मानना था कि शुद्धता केवल शारीरिक ही नहीं होती, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक भी होती है। स्नान करने से व्यक्ति न केवल शारीरिक रूप से साफ होता है, बल्कि मानसिक रूप से भी तरोताजा महसूस करता है। पानी को हमेशा से ही पवित्रता और शांति का प्रतीक माना गया है, इसलिए स्नान को शुद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है।

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में जीवन के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे नियम बताए हैं जो व्यक्ति को स्वच्छ और सकारात्मक बनाए रखने में मदद करते हैं। उनके अनुसार, यदि व्यक्ति उपरोक्त कार्यों के बाद स्नान करता है, तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और शुद्ध रहता है। यह न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए बल्कि उसकी सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है।

आचार्य चाणक्य की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जीवन के हर छोटे-बड़े कार्य में स्वच्छता और अनुशासन को बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं।

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