बीता हुआ दौर और समय किसे अच्छा नहीं लगता. हम अक्सर बीते दिनों को लेकर नॉस्टैलजिक हो जाते हैं. हम अपने पुरखों से हमेशा ही सुनते रहे हैं कि कैसे उनके जमाने में 1 रुपये में किलो भर शुद्ध देसी घी मिल जाया करता था. मगर इन सभी बातों के बीच हम कई बार इन बातों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि हमारे पुरखो के लोग कितने खुले दिल और दिमाग से जीवन जिया करते थे. वे कभी छोटी-छोटी बातों पर नहीं लड़े। फिर भी हमे यह लगता है की हम अपने पुरखों से बेहतर और आगे हैं लेकिन ऐसा नहीं है। आइए हम आपको कुछ ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाते हैं जो आपके इन सारे भ्रमों को तोड़ देगा... 1. स्त्रियों की इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे अपना जीवनसाथी चुन सकें. इसके बावजूद उनके कुंवारे रहने की भी पूरी आज़ादी थी. 2. प्राचीन भारत और वैदिक काल के दौरान महिलाएं भी तपस्वी व मुनि हुआ करती थीं. उन्हें उस दौरान ऋषिका कहा जाता था. 3. मनुस्मृति के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों को इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे कैसे धन कमाएंगी और किस प्रकार और कहां खर्च करेंगी. 4. सनातन धर्म प्राचीन भारत का एक ऐसा धर्म है जिसका पालन अधिकांश भारत करता है. इसे किसी लिंग विशेष तक सीमित नहीं किया गया था. 5. कामसूत्र प्राचीन भारत की एक ऐसी किताब है जिसमें इस बात का स्पष्ट जिक्र है कि संभोग के दौरान किस तरह का बर्ताव और दुराव रखना चाहिए. साथ ही यह संभोग की अलग-अलग मुद्राओं का भी जिक्र करता है. 6. 18 वीं सदी में स्त्री और पुरुष को सभी क्षेत्रों में बराबरी का दर्जा प्राप्त था. जी हां सारे क्षेत्रों में. 7. प्राचीन भारत में बहादुर और प्रतीभाशाली स्त्रियों की कोई कमी नहीं थी. रानी चेनम्मा और वर्तमान आंध्रप्रदेश की रुद्रमदेवी वैसी ही स्त्रियां रही हैं. 8. प्राचीन भारत में स्त्रियों के योनिच्छद् को लेकर कोई हो-हल्ला नहीं था. स्त्रियों के कौमार्य को लेकर कोई बहस और सवाल नहीं थे. 9. सेक्स या संभोग तब निषिद्ध विषय नहीं था. लोग इस विषय पर खुल कर बातचीत किया करते थे. 10.संस्कृत के एक मशहूर व प्राचीन कवि राजशेखर ने कहा है कि साहित्य में लिंग विभेद जैसी कोई बात नहीं होती. Video : भारत में ही मिलेंगे ऐसे जुगाड़ू लोग सज़ा सुनाने के बाद आखिर क्यों तोड़ देता है जज अपने पेन की नीब