मरने के बाद शरीर में दिखाई देने लगती है ये चीज

जब कोई व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करता है, तो उसके शरीर में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं। इनमें से पहला बदलाव "पैलर मोर्टिस" कहलाता है, जिसमें शरीर का रंग पीला पड़ने लगता है। यह स्थिति लगभग 15 से 20 मिनट बाद होती है और इसका कारण रक्त केशिकाओं के माध्यम से रक्त का बहना बंद होना है।

पैलर मोर्टिस की प्रक्रिया

यह प्रक्रिया सभी लोगों में समान होती है, लेकिन जिन लोगों की त्वचा का रंग गहरा होता है, उनके लिए यह बदलाव तुरंत नहीं दिखाई देता। जैसे ही पैलर मोर्टिस की प्रक्रिया शुरू होती है, शरीर का तापमान भी धीरे-धीरे गिरने लगता है। सामान्यत: शरीर का तापमान प्रति घंटे लगभग 1.5 °F (0.84 °C) तक कम हो जाता है।

ऑटोलिसिस: स्व-पाचन की प्रक्रिया

मृत्यु के बाद, शरीर में "ऑटोलिसिस" की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसे स्व-पाचन भी कहा जाता है। इस दौरान, एंजाइम ऑक्सीजन से वंचित कोशिकाओं की झिल्लियों को पचाना शुरू कर देते हैं। क्षतिग्रस्त रक्त कोशिकाएं अपनी टूटी हुई वाहिकाओं से बाहर निकलकर त्वचा की सतह पर रंग परिवर्तन का कारण बनती हैं।

रंग परिवर्तन का समय: मौत के लगभग एक घंटे बाद रंग परिवर्तन, जैसे बैंगनी नीला रंग और लाल धब्बे, दिखाई देना शुरू होता है। हालांकि, ये बदलाव आमतौर पर कुछ घंटों बाद तक स्पष्ट नहीं होते।

मांसपेशियों की स्थिति: रिगोर मोर्टिस

मौत के बाद एक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है, जिसे "रिगोर मोर्टिस" कहा जाता है। यह प्रक्रिया मृत्यु के लगभग दो से छह घंटे बाद शुरू होती है। इस दौरान मांसपेशियों में कठोरता आ जाती है। यह तब होता है जब एक्टिन और मायोसिन प्रोटीन के बीच रासायनिक पुल बनने लगते हैं। परिणामस्वरूप, मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं और जब तक ये पुल टूटते नहीं हैं, तब तक शरीर उसी स्थिति में रहता है।

शव परीक्षण और अंतिम संस्कार की कठिनाइयाँ: रिगोर मोर्टिस की वजह से शव परीक्षण करने या अंतिम संस्कार के लिए शरीर को तैयार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। क्योंकि मृत्यु के बाद शरीर अपनी लचीलापन खो देता है, जिससे इसे सही तरीके से संभालना मुश्किल होता है।

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