तमिलनाडु में सड़कों पर उतरे हज़ारों मछुआरे, कर रहे उस द्वीप पर मछली पकड़ने की मांग, जिसे इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को दे दिया था !

राणेश्वरम: तमिलनाडु के रामेश्वरम में शुक्रवार (19 जुलाई) को मछुआरों ने कई नेताओं के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन किया और इस साल श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़े गए 74 मछुआरों की तत्काल रिहाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंकाई नौसेना द्वारा जब्त किए गए 170 स्टीमबोट और देशी नावों को भी छोड़ने की मांग की। उन्होंने उन छह मछुआरों की तत्काल रिहाई की भी अपील की जिन्हें श्रीलंकाई नौसेना ने गिरफ्तार किया था और जिन्हें पहले ही श्रीलंकाई जेल में 1 साल, 2 साल और 6 महीने की सजा सुनाई जा चुकी है।

बता दें कि, 2018 से 2024 तक श्रीलंकाई नौसेना ने तमिलनाडु के मछुआरों की कुल 170 स्टीमबोट और देशी नावों को जब्त किया है। मछुआरों ने बजरों और देशी नावों पर पाए गए किसी भी नुकसान के लिए केंद्र सरकार के साथ-साथ तमिलनाडु की DMK सरकार से उचित मुआवजे की मांग की है। रामेश्वरम के मछुआरों और पंपन ऑल फिशरमेन फेडरेशन द्वारा रामेश्वरम बस स्टेशन के पास विरोध प्रदर्शन किया गया। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें बिना किसी समस्या के पारंपरिक कच्छतिवु क्षेत्र में मछली पकड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस विरोध प्रदर्शन में हज़ारों मछुआरे और स्थानीय नेता शामिल हुए, जिसमे कांग्रेस नेता भी शामिल थे। 

बता दें कि, 1974 तक कच्छतिवु द्वीप भारत का हिस्सा हुआ करता था और भारतीय मछुआरे वहां आसानी से मछलियां पकड़ते थे। लेकिन इसके बाद तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने यह द्वीप एक समझौते के तहत श्रीलंका को दे दिया था। जिसके बाद से कभी भी भारतीय मछुआरे वहां जाते हैं, तो श्रीलंका नौसेना उन्हें अरेस्ट कर लेती है और उनकी नाव जब्त कर लेती है। कच्चाथीवू द्वीप के हाथ से निकलने के कुछ ही समय बाद, भारत के भीतर इसे वापस लाने के लिए आवाज उठने लगी। वर्ष 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव को अपनाया, जिसमें द्वीप पर संप्रभुता पुनः प्राप्त करने की मांग व्यक्त की गई थी। इसके बाद, 2008 में, यह मुद्दा प्रमुखता से फिर से सामने आया जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने द्वीप समझौते को रद्द करने की मांग करते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन केंद्र का रवैया ढुलमुल रहा।

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