नई दिल्ली- जजों के चयन के लिए सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम कार्रवाई की पारदर्शिता के मुद्दे पर जस्टिस चेलमेश्वर के समर्थन में देश के तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीश आगे आए हैं. जस्टिस सतशिवम, जस्टिस लोढा और जस्टिस बालकृष्णन ने कहा कि उनके कार्यकाल में विचार के दायरे में आने वाले लोगों के गन दोषों पर बिना किसी लाग लपेट के खुली चर्चा करके आम सहमति बनाने के बाद ही सिफारिश की जाती थी. जस्टिस सतशिवम ने कहा कि आम सहमति और पारदर्शिता किसी भी चयन प्रक्रिया के अहम पहलू हैं.खासकर तब जब लोगों का चयन सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट जजों के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए हुआ हो. वहीँ जस्टिस लोढा का मत था कि कोलेजियम का सुचारू कामकाज सीजेआई और आम सहमति पाने के प्रयास पर निर्भर करता है.आम सहमति बनाने में वक्त लगता है.कोलेजियम के सामने कोई नाम रखने के पहले उनके अब तक के काम काज , गुण और योग्यता को लेकर सभी सूत्रों से जानकारी जुटानी चाहिए.विचारों का खुला और बेबाक आदान - प्रदान होना चाहिए.अगर किसी खास नाम पर सहमति नहीं बन पा रही हो तो बहुमत के आधार पर सिफारिश नहीं करनी चाहिए.इस मुद्दे पर जस्टिस बालकृष्णन ने भी सहमति जताई लेकिन वे कोलेजियम मेम्बर के नजरिये को रिकार्ड करने के खिलाफ थे. जस्टिस बालकृष्णन का विचार था कि सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति को लेकर जिन लोगों पर विचार होता है उनमे बड़ी संख्या है कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों कि होती है.कोलेजियम सदस्यों की राय चीफ जस्टिस के खिलाफ हो सकती है.वे कोलेजियम मीटिंग में अपनी बात रख सकते हैं लेकिन उसका रिकार्ड रखना उचित नहीं है. यह रिकार्ड लीक हो गए तो चीफ जस्टिस के लिए मुश्किल हो सकती है.कोलेजियम कोई डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी नहीं है जो किसी व्यक्ति के खिलाफ लगे आरोपों का रिकार्ड करे.बल्कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज होते हैं. अगर किसी नाम पर आम राय नहीं बने तो उसकी नियुक्ति की सिफारिश कभी नहीं करनी चाहिए.जबकि जस्टिस सतशिवम और जस्टिस लोढा ने कोलेजियम मेंबर के राय रिकार्ड रझने की वकालत की . क्या खत्म होगी धारा 370 ?