उत्तराखंड में प्राइवेट मेडिकल कालेजों की फीस में तीन सौ फीसदी इजाफा

उत्तराखंड राज्य की बीजेपी सरकार ने 3 प्राइवेट मेडिकल कालेजों को मनमानी फीस लेने का अधिकार दे दिया है. अधिकार मिलने के बाद मनमानी करते हुए कॉलेजों ने गेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्सेज की फीस करीब 300 फीसदी तक बढ़ा दी है. ये खबर सुनने के बाद इन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया है. सूत्रों के अनुसार फीस बढ़ाने में देहरादून के स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी का हिमालयन मेडिकल कॉलेज, SGRR यूनिवर्सिटी का SGRR मेडिकल कॉलेज और सुभारती यूनिवर्सिटी का सुभारती मेडिकल कॉलेज शामिल हैं. जहां SGRR मेडिकल कॉलेज और हेल्थ साइंसेज कॉलेज ने प्रथम वर्ष की एमबीबीएस ट्यूशन फीस को 5 लाख से बढ़ाकर 19.76 लाख रुपये करने का निर्णय लिया है.

वहीं एमडी इन जनरल मेडिसिन के पोस्ट-ग्रेजुएशन कोर्स की पहले वर्ष की फीस 7.38 लाख रुपये से बढ़ाकर 26.6 लाख रुपये कर दी गई. बढ़ी हुई फीस घोषित होने के बाद छात्रों ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है, छात्र कॉलेज प्रबंधन से अपना फैसला वापस लेने की मांग कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी तक उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के पहले साल की फीस 6 लाख 70 हजार थी, जो अब 23 लाख कर दी गई है. दूसरे साल की फीस 7 लाख 25 हजार को 20 लाख रुपये कर दिया गया है. वहीं तीसरे साल की फीस को 7 लाख 36 हजार से बढ़ाकर 26 लाख रुपये कर दिया गया है. मेडिकल कॉलेज में पढने वाले जो छात्र दूसरे साल में पहुंच गए हैं, उनसे पहले साल की बकाया फीस ली जाएगी. यानी दूसरे साल के छात्रों को भी फीस में कोई छूट नहीं दी जाएगी.

फीस बढ़ने के मामले में उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा है कि एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज बनाने में 700-800 करोड़ लगते हैं, सरकार इन्हें स्थापित करने के लिए कोई सहायता प्रदान नहीं करती है. उन्होंने कहा, 'सरकार राज्य में निवेशकों का स्वागत करना चाहती है, इसलिए हमने प्राइवेट मेडिकल संस्थानों को अपनी फीस तय करने की अनुमति दी है. हालांकि, यदि संस्थान जरूरत से ज्यादा फीस लेते है तो सरकार हस्तक्षेप करेगी.' फीस वृद्धि के मामले में कॉलेजों को छूट देने का फैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की कैबिनेट बैठक में लिया गया था. इस फैसले को लेकर कैबिनेट बैठक में कहा गया था कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खुद यूनिवर्सिटी हैं, इसलिए MD (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) और MS (मास्टर इन सर्जरी) की पढ़ाई के लिए फीस निर्धारण का अधिकार देने का फैसला लिया गया.

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