समलैंगिक समुदाय की शीर्ष तीन याचिकाएं, जिनके आगे नतमस्तक हुई धारा 377

नई दिल्ली: देश की शीर्ष अदालत ने आज धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, धारा के तहत समलैंगिक यौन संबंधों को अपराधों को श्रेणी में रखा जाता था, पर अदालत ने अब समलैंगिक यौन संबंधो को अपराध की श्रेणी में रखने से इंकार करते हुए कहा है कि सेक्स किसी भी व्यक्ति के जीवन का निजी मामला है, इसलिए इसे अपराध की श्रेणी में रखना ठीक नहीं है, सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह उनका मौलिक अधिकार है और देश का कानून और संविधान सबको समानता का अधिकार देता है. 

धारा 377 से इस प्रावधान को हटाने के लिए lGBTQ समुदाय के अलावा भी अन्य लोगों ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमे उन्होंने समलैंगिक यौन संबंधों को मंजूरी देने और उसे आपराधिक श्रेणी से हटाने की मांग की थी. हम आपके लिए लाए हैं ऐसे ही तीन लोगों की याचिकाएं, जिन्होंने शीर्ष अदालत को उनके हक़ में फैसला देने को मजबूर कर दिया. 

गौतम यादव: 27 वर्षीय गौतम यादव दिल्ली स्थित एक एनजीओ हमसफ़र ट्रस्ट के अधिकारी हैं. अपनी याचिका में उन्होंने स्कूली दिनों की प्रताड़ना का जिक्र करते हुए बताया है कि 15 वर्ष की आयु में उन्हें उनकी यौन प्रवृत्ति के कारण अपमानित करके स्कूल से निकाल दिया था. वे बताते हैं कि इसी वजह से उनके अपने रिश्तेदारों और समाज ने भी उनका उपहास किया. 19 वर्ष कि उम्र में उन्हें पता चला कि वे HIV पॉजिटिव है, तब उन्होंने इस बात को खुलकर सबके सामने रखा कि वे एक HIV पॉजिटिव हैं और होमोसेक्सुअल की जिंदगी जीना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मैंने ये याचिका इसलिए दायर की क्योंकि मैं अपने साथ घटित हुए घटनाओं से देश और अदालत को अवगत कराना चाहता था.

अक्कई पद्मशाली: 32 वर्षीय अक्कई पद्मशली एक ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता हैं और कर्नाटक सरकार के राज्योत्सव पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं. उन्होंने दो अन्य ट्रांसजेंडर्स के साथ सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 के विरोध में याचिका दायर की थी, उन्होंने कहा कि "मैं धारा 377 को ख़त्म करने तक आराम नहीं कर सकती, पुलिस मुझे कैसे बता सकती है कि अप्राकृतिक क्या है? मेरे यौन संबंधों को बदनाम करने वाला समाज कौन है? दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, हम इस प्रतिकूल कानून को स्वीकार नहीं कर सकते हैं."

उर्वी  : 21 वर्षीय उर्वी बॉम्बे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में एक शोध इंटर्न है और आंध्र प्रदेश के अनंतपुर से हैं. याचिका में एक अलग नाम का उपयोग करने वाले उर्वी एक ट्रांसजेंडर महिला है, जो बचपन से गरीबी से जूझ रही है. उसने अपने पिता को जल्दी ही खो दिया और इसके बाद उनपर अपनी माँ और परिवार का दायित्व आ गया. उनका कहना है कि "धारा 377 लोगों को खुद को व्यक्त करने की आज़ादी नहीं देती  है, साथ ही उनपर सामाजिक कलंक भी लगाता है. इसके ख़त्म होने से ही आगामी पीढ़ी खुद को व्यक्त करने के लिए आज़ाद हो पाएगी. 

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