आज हम आपके साथ शेयर करने जा रहे है टायर्स की देखरेख का तरीका, वैसे तो टायर्स मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। एक ट्यूब वाला और दूसरा ट्यूबलेस टायर होता है। आजकल ट्यूबलेस टायर अधिक चलन में है। ट़यूब वाले टायर आमतौर पर कम कीमत के होते हैं। ट्यूब और टायर के बीच होने वाले फ्रिक्शन की वजह से ये टायर जल्दी गर्म हो जाता है और इसीलिए ऐसे टायर पंक्चर भी जल्दी होते हैं। यही वजह है कि ट़यूब वाले टायर अब बाजार से गायब होते नजर आ रहे हैं। ट़यूबलेस टायर कई फायदे होते हैं। ट्यूबलेस टायर से सड़क पर बेहतर ग्रिप और कंट्रोल मिलता है। ट्यूबलेस टायर का बड़ा फायदा यह है कि अगर सफर के दौरान कभी टायर पंक्चर भी हो जाए तो इसमें से हवा तुरंत नहीं निकलती, इसलिए सफर बाधित नहीं होता है। स्टील रिम पर भी ट्यूबलेस टायर्स अच्छी परफॉमेंर्स देते हैं। कब बदलें टायर टायर्स की देखभाल के लिए हफ्ते में एक बार टायर्स का प्रेशर जरूर चेक कराएं। टायर में हवा उतनी ही रखें जितनी कंपनी ने बताई है। अपनी मर्जी से हवा कम या ज्यादा न डलवायें, इससे टायर्स को नुकसान पहुंचने ने चांस बढ़ जाते हैं। साथ माइलेज पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा हर 5000 किलोमीटर पर व्हील अलाइनमेंट और रोटेशन कराने करना चाइये, इससे टायर्स की परफॉरमेंस बढ़ जाती है। अगर टायर्स के ट्रेड में फंसे कंकड़-पत्थर, कील-कांटे भी समय-समय पर निकालें। टायर साफ करने के लिए पेट्रोलियम बेस्ड डिटरजेंट या केमिकल क्लीनर का प्रयोग न करें। पानी से टायर्स को साफ किया जा सकता है। समान्य तौर पर 40,000 किलोमीटर चलने के बाद टायर बदल देना चाहिए। अगर आपको इसके बाद भी लगता है कि टायर ठीक हालत में है तो इनका इस्तेमाल 10,000 किलोमीटर तक और इस्तेमाल किया जा सकता है। उसके बाद आपको टायर्स को बदलावा देना चाइये। वाहन नियमों के की मानें तो, टायर पर बने खांचे (ट्रेड) की गहराई 1.6 मिमी रह जाए तो टायर बदल दिया जाना चाहिए। टायर्स उम्र पांच साल होती है। टू-व्हीलर हो या फोर-व्हीलर, कभी भी ओवरलोडिंग नहीं करनी चाहिए। उतना ही सामान रखना चाइये जितना वाहन की कैपसिटी है। क्योंकि ज्यादा लोड करने से गाड़ी की परफॉरमेंस और टायर्स पर बुरा असर पड़ता है। मंदी की बीच दिवाली की धूम, धनतेरस के पहले 30 करोड़ वाहन हुए बुक ये ख़ास एयरबेग्स, दुर्घटना में आपके जान की रक्षा, जाने ये है टाटा मोटर्स की ये दमदार गाड़िया अब बन चुकी है इतिहास