मैसूर के राजा टीपू सुल्तान को लेकर भारत ने दो तरह की धारणाएं प्रचलित हैं। एक तो सेक्युलर जमात है, जो टीपू सुल्तान को एक महान और देशभक्त राजा बताती है, जिसने देश के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग की। वहीं दूसरी तरह दक्षिणपंथी लोगों का मानना है कि टीपू एक बेहद ही क्रूर राजा था, जिसने इस्लाम के नाम पर देश के हिन्दुओं और गैर-मुस्लिमों पर बेइंतेहां जुल्म किए। अंग्रेज़ों से लड़ने के पीछे उसका मकसद देशभक्ति नहीं बल्कि उसका राज्य था, जिसके लिए उसने ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान से भी मदद मांगी थी। इन सब के बीच टीपू की सच्चाई जानने के लिए हमें उसके एक बेहद करीबी दरबारी की कलम पर नज़र डालनी पड़ेगी। टीपू के दरबारी इतिहासकार मीर हुसैन किरमानी ने उसके बारे में एक जगह उल्लेख करते हुए लिखा है कि 'टीपू मराठा, निज़ाम, ट्रावनकोर के राजा, कुर्ग सबको दबाना चाहता था। इसके लिए उसने क्रूरता बरतने में कोई कोताही नहीं की। 1788 में टीपू सुल्तान ने केरल में एक बड़ी सेना भेज दी। मशहूर कालीकट शहर को तबाह कर दिया गया। सैकड़ों मंदिरों और चर्चों को चुन-चुन के ढहा दिया। हजारों हिन्दुओं और ईसाईयों को जबरन मुसलमान बना दिया गया। जो लोग नहीं माने, उनको क़त्ल कर दिया गया।' हुसैन किरमानी की बात से यह साफ़ होता है कि टीपू एक क्रूर शासक था। इसी वजह से 1799 में टीपू के खिलाफ लड़ाई में अंग्रेज़ों का साथ मराठा और अन्य राजाओं ने भी दिया। तीन हफ़्तों तक चली भारी बमबारी के बाद टीपू के किले की दीवारें दरक गईं। हालांकि, टीपू लड़ता रहा। हाथ में तलवार लिए वो श्रीरंगपटनम किले के दरवाजे पर मारा गया। टीपू बेशक एक महान योद्धा था, लेकिन महान राजा, यह कहना गलत ही होगा। भारत को जुलाई तक COVID-19 वैक्सीन की कमी का करना पड़ सकता है सामना: SII प्रमुख Glenmark Pharma ने भारत में सस्ती कीमत पर एलर्जिक राइनाइटिस को किया लॉन्च बड़ी खबर! खत्म हुआ चुनाव तो बंगाल और तमिलनाडु में बढ़ा कोरोना का कहर