हमारे देश में भगवान विष्णु के अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इन सभी के बारे में आप सभी जानते ही होंगे। हालाँकि इन मंदिरों में भगवान विष्णु की पूजा अलग-अलग रूपों व नाम से की जाती है। इस लिस्ट में शामिल है एक प्राचीन मंदिर तिरुपति बालाजी का। तिरुपति बालाजी वह मंदिर है जो भगवान वेंकेटेश्वर को समर्पित है। भगवान वेंकेटेश्वर भगवान विष्णु का ही एक रूप है। जी हाँ और ये मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। श्री वेंकटेश्वर का यह मंदिर वेंकटाद्रि पर्वत की चोटी पर है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर को देश का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है। आखिर क्यों लगता है खरमास, जानिए इससे जुड़ी रोचक कथा इस मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। इनमे पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह के समय होते हैं। दूसरे दर्शन दोपहर को और तीसरे दर्शन रात को होते हैं। इनके अलावा अन्य दर्शन भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित है। हालाँकि पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। भगवान बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में स्थापित काले रंग की दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि वह खुद ही जमीन से प्रकट हुई थी। वेंकटाचल पर्वत को भी लोग भगवान का ही स्वरूप मानते है और इसलिए उस पर जूते लेकर नहीं जाया जाता। भगवान तिरुपति के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करें। वहां से आने के बाद तिरुण्चानूर जाकर पद्मावती के दर्शन करने की परंपरा मानी जाती है। आपको यह भी बता दें कि इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां आने वाले दर्शनाथी अपने बाल भगवान बालाजी को दान करते हैं यानी सिर मुंडवाकर अपने बाल यहीं छोड़ जाते हैं। स्त्री हो या पुरूष, बच्चे हों या बूढ़े, अधिकांश लोग इस परंपरा का निर्वहन करते हैं। ये परंपरा कैसे शुरू हुई, इसके बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसा कहते हैं कि जो व्यक्ति तिरुपति बालाजी में अपने बाल दान करता है, वो अपने बालों के रूप में पापों और बुराइयों को भी इसी जगह पर छोड़ जाता है। आखिर कब और कैसे पढ़ना चाहिए गरुड़ पुराण? आज है बुध प्रदोष व्रत, इस कथा को पढ़े-सुने बिना पूरा नहीं होगा व्रत श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने के ये हैं नियम, ना मानने पर नहीं मिलेगा फल