रांची : झारखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान एक विवादित वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति यह स्वीकार करता नजर आ रहा है कि चुनाव लड़ने और जमीन खरीदने के लिए जनजातीय महिलाओं से निकाह किया जाता है। इससे पहले आदिवसी लड़कियों का धर्मान्तरण कर उन्हें मुसलमान भी बनाया जाता है, लेकिन उनका नाम नहीं बदला जाता, ताकि दुनिया की नज़र में वो आदिवासी ही बनी रहें और उनके मुस्लिम पति उसका लाभ उठाते रहें। उल्लेखनीय है कि, कुछ ऐसे भी मामले झारखंड में सामने आए हैं, जहाँ जमीन हड़पने के बाद मुस्लिम पुरुषों ने आदिवासियों महिलाओं को भगा दिया। साथ ही कुछ रिपोर्ट्स में यहाँ तक दावा है कि राज्य में प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन PFI और बांग्लादेशी घुसपैठिए अपनी पैठ बनाने के लिए आदिवासी महिलाओं को झांसे में लेकर शादी कर रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं। लेकिन खुद को आदिवासी हितैषी बताने वाला विपक्ष का एक भी नेता इस मुद्दे पर मुंह नहीं खोलता, क्योंकि इससे मुस्लिम वोट बैंक के नाराज़ होने का डर है, केवल निशिकांत दुबे, शिवराज सिंह, हिमंता सरमा जैसे भाजपा नेता ही इस मुद्दे को उठाते रहे हैं यह वीडियो ई-ऑर्गनाइजर की पत्रकार सुभी विश्वकर्मा और आजाद निशांत द्वारा रिकॉर्ड किए गए इंटरव्यू का हिस्सा है। वायरल वीडियो में व्यक्ति ने बताया कि बरहेट विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है। इसी वजह से जनजातीय महिलाओं से शादी करने का निर्णय लिया जाता है, हालांकि यह सहमति से होता है। उसने यह भी कहा कि शादी का उद्देश्य सिर्फ चुनाव लड़ने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका एक और बड़ा मकसद जमीन खरीदने का अधिकार प्राप्त करना है। इंटरव्यू में यह भी खुलासा हुआ कि इन अंतर-धार्मिक शादियों का मकसद केवल सांस्कृतिक मिलन नहीं, बल्कि चुनावी और संपत्ति संबंधी फायदे उठाना होता है। धर्मांतरण और निकाह के जरिए गैर-आदिवासी व्यक्ति एसटी आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की पात्रता प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार की शादियों को "जमाई टोला" कहा जाता है। रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकार सुभी विश्वकर्मा ने राजमहल संसदीय क्षेत्र की जिला परिषद अध्यक्ष मोनिका किस्कू से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने पहले उमैद अली से निकाह किया था और बाद में एजाज नाम के व्यक्ति से शादी की। यह बयान भी इन आरोपों को मजबूती देता है कि इन शादियों के पीछे व्यक्तिगत लाभ और राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जुड़ी होती हैं। यह मामला राज्य में आदिवासी समाज और जनजातीय समुदाय की पहचान और अधिकारों को लेकर चिंताओं को बढ़ा रहा है। इन घटनाओं को लेकर कई आदिवासी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह न केवल आदिवासी समाज के अधिकारों के दुरुपयोग का मामला है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान पर भी खतरा है। विधानसभा चुनावों के दौरान ऐसे मामलों का सामने आना राजनीतिक माहौल को और गरमा देता है। इस घटना ने न केवल आदिवासी समुदाय की सुरक्षा और अधिकारों पर बहस छेड़ दी है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या आरक्षित सीटों के लिए नियमों का सही तरीके से पालन हो रहा है। यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद गंभीर है और प्रशासन से इस पर कार्रवाई की मांग की जा रही है। मणिपुर में और सख्त हुई सुरक्षा, 107 नाकेे और चेकपोस्ट स्थापित, जगह-जगह छापेमारी शुरू 'हिन्दुओं पर अत्याचार को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया..', ये हैं शान्ति के नोबल विजेता मोहम्मद यूनुस भाजपा दफ्तर पर क्या कर रही 'मुलायम' की तस्वीर? खुद कार्यकर्ता भी हैरान