आज नवरात्री का चौथा दिन, माँ कूष्मांडा के पूजन के दौरान रखें इन बातों का ध्यान

चैत्र नवरात्रि का 22 मार्च से शुंभारंभ हो गया है। इस दिन मां दर्गा के चतुर्थ रुप कूष्मांडा की पूजा की जाती है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की वजह से इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इसलिए उन्हें अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। मां अपने भक्तों के कष्ट और रोग का नाश करती है। मां कूष्मांडा की पूजा उपासना करने से भक्तों को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। एवं व्यक्ति के आयु और यश में में बढ़ोतरी होती है। मां कूष्मांडा को मालपुए का प्रसाद और हरे फल चढ़ाने चाहिए। देवी कूष्मांडा का वाहन सिंह है। आइये आज आपको बताते है मां कूष्मांडा की पूजन विधि...

ऐसे करें मां की पूजा:- चौथे दिन सबसे पहले आप कलश और उसमें उपस्थित सभी देवी देवताओं की पूजा करें। तत्पश्चात, देवी कूष्मांडा की पूजा करें। पूजा शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करते हुए ‘सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।’मंत्र का जप करें। इसके बाद शप्तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और उसके बाद आरती करें। अच्छे से पूजा अर्चना करने के बाद मां से क्षमा प्रार्थना करना न भूलें। इसके बाद सभी के प्रसाद देकर अंत में माता को मालपुए या फिर कद्दू से बने पेठे का भोग लगाएं।

कुष्मांडा देवी का मंत्र:- भगवान सर्वशक्तिमान है तो सारे दुःखी और बीमार लोगों की पीड़ा खत्म क्यों नहीं कर देता?

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण प्रतिष्ठितता। नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै: नमस्तस्यै नमो नम:..

दूसरा मंत्र कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा

कूष्मांडा देवी आरती:-

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुंचती हो मां अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

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