विश्व शौचालय दिवस जो हर साल 19 नवंबर को मनाया जाता है, यूनाइटेड नेशंस के अनुसार विश्व की अनुमानि ढाई अरब आबादी को पर्याप्त स्वच्छता हासिल नहीं है और एक अरब वैश्विक आबादी खुले में शौच करने को मजबूर है उनमे से आधे से अधिक लोग भारत में रहते हैं। जिसका नतीजा बीमारियां उत्पन्न होने के साथ साथ पर्यावरण का दूषित होना। इसलिए भारत सरकार इस समस्या से उबरने के लिए स्वच्छ भारत अभियान चला रही है, किन्तु एक सर्वे के मुताबिक खुले में शौच जाना एक तरह की मानसिकता को प्रदर्शित करता है। इसके अनुसार, सार्वजनिक शौचालयोँ में नियमित रूप से जाने वाले लगभग आधे लोगो और खुले में शौच जाने वाले इतने ही लोगो का कहना है कि यह सुविधाजनक उपाय है। ऐसे में स्वच्छ भारत के लिए सोच में परिवर्तन की जरुर दिखती है। विश्व में हर तीन में से एक महिला को सुरक्षित शौचालय की सुविधा मुहैया नहीं है। खुले में शौच के लिए मजबूर होने के कारण महिलाओं और बालिकाओं की निजता और सम्मान पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उनके खिलाफ हिंसा तथा दुष्कर्म जैसी घटनाओं की आशंका बनी रहती है। शौचालय का इस्तेमाल करने से इस तरह की आपराधिक घटनाओं में भी कमी आएगी और देश महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित बन सकेगा । बता दें कि स्वच्छता सिर्फ मानवीय स्वास्थ्य के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी जरुरी है। खुले में पड़े हुए मल से न सिर्फ भू-जल प्रदूषित होता है, बल्कि कृषि उत्पाद भी इस प्रदूषण की चपेट में आते हैं। यही मल डायरिया, हैजा, टायफाइड जैसी जानलेवा बीमारियों के कीटाणुओं के फैलने का कारण भी बनता है। शौचालय न सिर्फ प्रदूषण और इन बीमारियों से बचने के लिए आवश्यक है, बल्कि एक साफ-सुथरे सामुदायिक पर्यावरण के लिए भी जरूरी है। शौचालय ही वो जगह है जहां मानव मल का एक ही स्थान पर निपटान संभव है। जिससे पर्यावरण को भी साफ-सुथरा सुरक्षित रखा जा सकता है और राष्ट्रीय विकास में भी अपना योगदान दिया जा सकता है, क्योंकि जब भारतीय नागरिक और भारत का पर्यावरण समस्या रहित रहेंगे, तभी तो राष्ट्र तरक्की करेगा। अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते डॉलर के मुकाबले रूपए की कीमत में भारी गिरावट भारत-अमेरिका बैठक में चिकित्सा उपकरण, जीएसपी समेत अन्य मुद्दों पर होगी चर्चा भारत छोड़ने वाले बयान के लिए वोडाफोन ग्रुप के सीईओ निक ने सरकार से मांगी माफी