मध्य प्रदेश में लगातार संक्रमण बढ़ रहा है. ऐसे में प्रशासन ने सख्ती और बढ़ा दी है. लॉकडाउन के बाद टीकमगढ़ जिले में बड़ी संख्या में शहरों से प्रवासी मजदूर वापस अपने गांव लौटे है. लॉकडाउन की शुरूआत से जिला प्रशासन गरीब और जरूरतमंद लोगों को राशन उपलब्ध करवाने की भले ही बातें कर रहा हो, लेकिन 24 दिन बीत जाने के बाद जिले के आदिवासी क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और ही बता रही है. अभावग्रस्त गांवों के जनजीवन पर इस लॉकडाउन का असर अब दिखने लगा है. गांवों में इस बीमारी को लेकर भय का भी माहौल बना हुआ है. बता दें की लॉकडाउन के चलते महानगरों से वापस लौटने में प्रवासी मजदूरों की जमा पूंजी खत्म हो गई. अब गांव में काम न मिलने से दुकानदार इन्हें उधार देने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में परिवार के सदस्यों का पेट भरना आदिवासी परिवारों को मुश्किल हो रहा है. ऐसा ही मामला टीकमगढ़ जिले की बड़ागांव धसाना तहसील में देखने को मिल रहा है. लॉकडाउन होने के बाद से काम न मिलने से 40-50 घरों के रहने वाले आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है. उन्हें इस संकट की घड़ी में वे परिवार का भरण पोषण करने के लिए पुरानी परंपरागत समय काल के तरह समाई, कोदे और लठारा की रोटी बनाकर खाने को मजबूर हैं, लेकिन सरकार द्वारा गरीब परिवारों को दी जाने वाली सुविधा से ये लोग महरूम हैं. शासन से आने वाली राशन सामग्री इन गरीब परिवारों के घरों में पहुंच ही नहीं पा रही है. जानकारी के लिए बता दें की बुंदेलखंड के पिछड़े जिलों में शामिल टीकमगढ़ में होली के बाद अचानक से गांव खाली होने लगते हैं. मानसून आने तक लोग दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र और उप्र के शहरों और ग्रामीण इलाकों में जाकर दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. मानसून की पहली बारिश के बाद यह लोग वापस अपने गांव आकर खरीफ फसल की तैयारी में जुट जाते हैं, पर इस साल कोरोना वायरस के चलते कहानी अलग है. होली के बाद बड़ी संख्या में लोग काम पर निकल गए थे, लेकिन 90 फीसदी से अधिक लोग लॉकडाउन के बाद संघर्ष करते हुए अपने गांव तक वापस पहुंच गए. मेरठ कोरोना अस्पताल में भर्ती संदिग्ध की मौत, जांच रिपोर्ट आना बाकी कोरोना संकट में जनता को लगा बड़ा झटका, खल रही है स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री की कमी आज से एमपी के इस जिलें में शुरू होगी Ola एंबुलेंस