श्रद्धांजलि: जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए

कभी-कभी लोग जुदा हो जाते है और हमारे पास छोड़ जाते है ढेर सारे शब्द जो किसी खजाने की तरह हमेशा पास रहते है. ये लोग ज़िंदगी में बहुत अज़ीज़ होते है लेकिन जब ये वक़्त बे वक़्त इस दुनिया से अचानक विदा ले लेते है तब खुदा पर यकीन नहीं होता. कुछ ऐसे ही थे शशांक शुक्ला, जो अब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें अब भी ज़हन में ठीक वैसे ही बसी है जैसे पहले बसी थी. एक प्यारे लेखक के साथ एक अच्छे इंसान शशांक शुक्ल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी लिखी हुई एक रचना.

तुम होतीं तो आज एक नज़्म सुनाता तुम्हें, तुम्हारे न होने पे जो बेख़याली सी है उसे ख़यालों से भर देता... ये चाँद जो चाँदनी की चादर तले सितारों की फसल बो रहा है उसे आईने में तुम्हारा चेहरा दिखाता... तुम होतीं तो मेरे मिसरे बेबहर नहीं होते। तुम होतीं तो समंदर पे अनगिनत गुलाब की पंखुडियाँ बिखेर देने की चाहत को सच करने की कोशिश करता। ये जो औरों के लिए जीता हूँ, तुम होतीं तो मेरे सारे ख़्वाब मेरे अपने होते। तुम होतीं तो ये सोचता कि तुम्हारे न होने पर मार जाऊँगा मैं तुम होतीं तो ये ज़िन्दगी बेरब्त न होती, मिसरे बेबहर न होते।

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