World Cup ट्रॉफी की दो तस्वीरें ! भारत और पश्चिम की संस्कृति का अंतर दिखा आपको ?

नई दिल्ली: अपने मेहनत की, आप अच्छा खेले, आपने खिताब जीता, ये सब बातें अच्छी हैं। आपको ट्रॉफी जीतने के लिए बधाई ऑस्ट्रेलिया। लेकिन, क्या इतनी मेहनत और जुझारूपन दिखाकर हासिल की गई 'विश्व विजेता ट्रॉफी' के प्रति आपके मन में जरा सा भी सम्मान है ? आप बेशक हाँ में जवाब दे सकते हैं, लेकिन आपके कृत्यों से वो सम्मान नज़र तो नहीं आता। ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ मिचेल मार्श की एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमे वो वर्ल्ड कप ट्रॉफी पर पैर रखे बैठे हुए हैं। 

एक ऐसी ट्रॉफी, जिसके लिए कई क्रिकेटर अपनी पूरी जिन्दगी लगा देते हैं और मिचेल ने कूल दिखने के लिए इसके ऊपर पैर रख दिए। अब इसे उनका अतिआत्मविश्वास कहा जाए, या घमंड, लेकिन यह तस्वीर बेहद चौंकाने वाली और भद्दी है। क्या एक पेशेवर खिलाड़ी एक बड़े पुरस्कार के साथ ऐसे पेश आएगा ? ये तस्वीर भारत और पश्चिमी देशों में एक सांस्कृतिक अंतर को भी दर्शाती है। 

 

आपने 1983 के विश्व विजेता भारतीय कप्तान कपिल देव की तस्वीर कई बार देखी होगी, वे करोड़ों लोगों के सपनों और उम्मीदों को पूरा करने के बाद ट्रॉफी को सिर पर उठाए खड़े हैं। ये वो देश है, जहाँ किताबों को सरस्वती माना जाता है, जहां कण-कण को पूजा जाता है-अगर गलती से किसी को हमारा पैर लग जाता है तो माफ़ी माँगते हैं, उसे आदरपूर्वक छू कर माथे से लगाते हैं। 

ये हमारे संस्कार हैं, जो भारत के जन-जन के ह्रदय में बसते हैं, हम मानते हैं- ''ईशा वास्यम मिदं सर्वम यत किंचियाम जगत्याम जगत'' । अर्थात “ईश्वर इस जग के कण-कण में विद्यमान हैं”।  कपिल देव भारत की जीत को सर-आँखों पर रखते हैं, माथे पर सजाते हैं क्योंकि वो जिस माटी में पले-बढ़ें हैं,ये वहाँ के संस्कार हैं। लेकिन, भारत में एक कहावत भी है कि, घमंड और समय किसी का भी नहीं टिकता।

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