लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लोग आज के समय में ज्ञानवापी को दुर्भाग्य से मस्जिद के रूप में पहचानते हैं, लेकिन यह वास्तव में साक्षात भगवान विश्वनाथ की उपस्थिति है। यह बयान गुरुवार को वाराणसी कोर्ट के फैसले के बाद आया है। वाराणसी की अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित व्यास जी के तहखाने की मरम्मत की अनुमति देने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने तहखाने में चल रही पूजा गतिविधियों को बरकरार रखते हुए मुस्लिम पक्ष द्वारा उठाई गई आपत्तियों और सुप्रीम कोर्ट में लंबित चुनौती को ध्यान में रखा। हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने बताया कि अदालत का फैसला मुस्लिम पक्ष द्वारा तहखाने में मरम्मत के विरोध और सुप्रीम कोर्ट में चल रही कानूनी कार्यवाही पर आधारित था। इसके बावजूद, हिंदू पक्ष अब जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील करने की योजना बना रहा है। यादव ने बताया कि 31 जनवरी को तहखाने में पूजा फिर से शुरू हो गई थी, जिससे भक्तों को मूर्तियों के दर्शन की अनुमति मिल गई। हालांकि, हिंदू पक्ष ने पुरानी और कमजोर छत के कारण सुरक्षा पर चिंता जताई है और मरम्मत की मांग की है, ताकि छत और खंभों की मरम्मत की जा सके और गिरने का खतरा टाला जा सके। लेकिन, मुस्लिम पक्ष ने मरम्मत का विरोध किया है और कोर्ट ने हिन्दू पक्ष की याचिका ख़ारिज कर दी है। बता दें कि, ये पूरा मामला ज्ञानवापी के मालिकाना हक़ को लेकर है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि ये प्राचीन काशी विश्वनाथ का मंदिर है, जिसे औरंगज़ेब ने तुड़वाकर मस्जिद बना दी थी। हालाँकि, मुस्लिम पक्ष इसके लिए पहले तो कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में बनाए गए पूजा स्थल कानून का हवाला देता है। इस कानून के मुताबिक, भले ही मुगल राजाओं ने मंदिरों को तोड़कर उनकी जगह मस्जिदें बना दी हों, लेकिन हिन्दू पक्ष अब उन पर दावा नहीं कर सकता। उन स्थलों का धार्मिक चरित्र वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 को था। ये कानून कांग्रेस सरकार ने अयोध्या मामले के तूल पकड़ने के बाद बनाया था। ताकि काशी-मथुरा जैसे किसी अन्य विवादित ढाँचे की सच्चाई जानने की मांग ही न उठ सके। हालाँकि, जनता खुद सोच सकती है कि क्या इसे न्याय कहा जा सकता है ? एक तरफ तो मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के ही वक्फ एक्ट के जरिए मुगलों, नवाबों के वक़्त में कथित तौर पर दान की गई, जमीनों पर कब्जा करता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ हिन्दू पक्ष अपने प्राचीन मंदिरों के लिए भी कोर्ट नहीं जा सकता। हालाँकि, कुछ मुस्लिम मानते हैं कि काशी-मथुरा के मंदिर औरंगज़ेब ने ही तोड़े थे, लेकिन वे भी इसे वापस लौटाने की बात नहीं करते, सिर्फ केके मुहम्मद को छोड़कर। इतिहासकार इरफान हबीब ने स्वीकार किया है कि औरंगज़ेब ने काशी और मथुरा में मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई थीं। इसके विपरीत, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि मस्जिदें खाली जमीन पर बनाई गईं और इस्लाम किसी भी धार्मिक स्थल को तोड़कर मस्जिद बनाने की अनुमति नहीं देता। उनका कहना है कि यदि कहीं ऐसी मस्जिद बनाई भी जाती है, तो वहां से अल्लाह की नमाज़ स्वीकार नहीं होती। वहीं, इस पर चर्चा करते हुए पुरातत्वविद केके मोहम्मद ने भी कहा है कि मस्जिदें वास्तव में मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं और इसके सबूत मौजूद हैं, जिन्हें देखने की जरूरत है। केके मोहम्मद, जिन्होंने बाबरी मस्जिद की खुदाई कर मंदिर के अवशेषों का खुलासा किया था, ने इन जगहों को हिंदुओं को सौंपने की वकालत की है। हालांकि, जब वे ये बात कहते हैं तो उन्हें RSS का आदमी कहकर नकार दिया जाता है। कर्नाटक में 'श्रीगणेश' गिरफ्तार ! आखिर क्या है वायरल हो रही तस्वीर की सच्चाई ? रांची में राम मंदिर जैसा बन रहा था दुर्गा पंडाल, प्रशासन ने रोका, भड़की BJP 'बंगाल को मोदी सरकार से आज़ाद करवाए ममता..', बांग्लादेशी आतंकी रहमानी ने उगला जहर, Video